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25 नव॰ 2008

भूख की अर्थी

भूख की अर्थी

सफैद कपडे से सजी अर्थी पर
पुष्प वर्षा ,ढोल नगाडे
फिल्मी गानो की
धुन पर नाचते लोग
जा रहे मरघट की ओर
अनहोनी
सचमुच अचम्भित
करने वाली घटना
मरघट और नाच गाना
जहा होता है बस रोना-रुलाना
???????????????
होगा कोई अमीरजादा
पी होगी ज्यादा
मर गया
परिवार को आज़ाद कर गया
या फिर होगा कोई सठियाया
मरते-मरते होगा
अपना फरमान सुनाया
या फिर होगा कोई अत्याचारी
फैलाई होगी सामाजिक बीमारी
आज मर गया
लोगो को खुश कर गया
चलो जो भी था???????
धरती का बोझ कम कर गया
कौन था ?जान लेते है....
जिज्ञासा , शान्त कर लेते है
पता चला
कोई नामी किसान था
कभी उसका भी नाम था
बेटे को पढाना
उसका अरमान था
इसी चक्कर मे
बन गया मजदूर
रोका था उसे
न करो यह कार्य क्रूर
पढ-लिख कर बेटा क्या कमाएगा
नही पढेगा , तो तेरा हाथ बँटाएगा
कोई बात न मानी
बस अपनी ही जिद्द ठानी
पूरी भी की
और बेटे ने डिग्री भी ली
सारी उम्र पढाई मे गाली
बाप किसान से बन गया माली
और बेटा
कागज का टुकडा
हाथ मे थामे
दर-दर भटकता था
माँ-बाप को भी अटकता था
पेट मे भूख करती थी नर्तन
बजते थे घर मे खाली बर्तन
लान्घी तो थी उसने चारदीवारी
पर आगे पसरी थी बेरोजगारी
नही जानता था जेब काटना
और न अपना दुख बाँटना
स्वाभिमानी था
पढाई मे उसका न कोई सानी था
पर न तो बची थी दौलत
न थी इतनी शौहरत
कि उसे कोई काम मिल जाता
भूखे मरते थे
बस पानी ही पीते थे
बेटा खुदकुशी कर गया
बाप भूख से मर गया
माँ , बाप के साथ होगी सती
मिल जाएगी तीनो को गति
बेटा जवान था
माँ -बाप का अरमान था
उसका ब्याह रचाएँगे
बैण्ड बाजा बजाएँगे
जीते जी तो इच्छा रही अधूरी
अब कर देते है पूरी
उसने मौत को गले लगाया है
उसी को दुल्हन बनाया है
अब भूखे न रहेन्गे
कोई दर्द न सहेन्गे
मर कर समस्या हल कर दी
यह निकल रही है भूख की अर्थी

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2 टिप्‍पणियां:

हिन्दीवाणी ने कहा…

यह सिर्फ कविता भर नहीं है। मौजूदा दौर की हकीकतों से रूबरू कराती सच्चाई है।

बेनामी ने कहा…

Yusuf Kirmanine sahi hi comment kiya hai, "यह सिर्फ कविता भर नहीं है। मौजूदा दौर की हकीकतों से रूबरू कराती सच्चाई है।"
ek sanjeeda rachana,likhte rahiye.


------------------------"Vishal"