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23 दिस॰ 2008

जूतों की नियती

जूतों की नियती

1.
जूतों की नियती है
पैर तले रहना
अच्छे से अच्छा ब्राण्ड भी
पैरों की शोभा तो बढाता है
पर जूते की नियती
नहीं बदल पाता है
कहते हैं जब बाप का जूता
बेटे के पैरों मे आ जाए
तो वो बेटा नहीं रहता
दोस्त बन जाता है
और किसी गुलाम का जूता
अपनी सीमाओं को तोड
मालिक के सर पर पडे
तो वो गुलाम नहीं रहता
इतिहास बन जाता है

2.

अब देखना न्या कानून बनाया जाएगा
भरी महफिल मे नंगे पांव जाया जाएगा
भारत का इतिहास पुराना है
अब जाकर उसको पहिचाना है
भारत मे कितने बडे विद्वान थे
अरे वो तो पहले से ही सावधान थे

जूते अन्दर ले जाने की मनाही थी
पर बात हमने यूँ ही उडाई थी
अब फिर हमारी सभ्यता को अपनाया जाएगा
देखना भरी महफिल में नंगे पांव जाया जाएगा


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22 दिस॰ 2008

असली नकली चेहरा

असली नकली चेहरा

चेहरे पे चेहरा लगाते हैं लोग
सुना था
पर आज अपना ही चेहरा
नहीं पहचान पाती मैं
जब भी जाओ
आईने के सामने
ढूँढ़ना पड़ता है अपना चेहरा
न जाने कितने चेहरों
का नकाब ओढ़ रखा है
एक-एक कर जब सम्मुख
आते हैं
अपना परिचय करवाते हैं
तो सच मे ऐसे खूँखार चेहरों से
मुझे डर लगता है
कभी चाहती हूँ
मिटा दूँ इन सभी को
और ओढ़ लूँ केवल अपना
वास्त्विक चेहरा
न जाने क्यों उसी क्षण लगते हैं
सभी के सभी चेहरे अपने से
मुझे इनसे प्यार नहीं
ये सुन्दर भी नहीं
असह हैं मेरे लिए
फिर भी सहती हूँ
क्योंकि
यह मेरी कमजोरी नहीं
मजबूरी हैं
घूमने लगते हैं मेरे सम्मुख
वो सभी चेहरे
जिनको मैं जी-जान से चाहती हूँ
जिनके लिए मैंने अपनाए है
इतने सारे चेहरे
वो चेहरे, जिनकी एक मुस्कान
की खातिर
हर बार लगाया मैंने नया चेहरा
और भूलती गई
अपने चेहरे की पहचान भी
आज उस मोड़ पर हूँ
कि यह चेहरे हटा भी दूँ
असली चेहरे को अपना भी लूँ
तो वो चेहरा सबको
नकली ही लगेगा
मैं खुश तो नहीं
सन्तुष्ट हूँ
कि नकली चेहरा देखकर
मुस्कुरा देता है कोई

14 दिस॰ 2008

आतंकवाद और आतंकवादी की माँ

आतंकवाद और आतंकवादी की माँ

चाँद सा सुत जन्मा
माँ खुश
गोदी मे लाल की किलकारी
लगी बडी प्यारी
दिख गए सूनी आँखों मे
न जाने कितने ही सपने
बडा होगा तो
सहारा बन जाएगा
उसकी सौतन भूख को भगाएगा
मेरा नाम भी चमकाएगा
पर सौतन थी कि
बदले की आग मे भडकी थी
उसने भी अपनी जिद्द पकडी थी
सौतेली ही सही
मै इसकी माँ कहलाऊँगी
और दुनिया को दिखाऊँगी
इसकी माँ के साथ मेरा नाम भी आएगा
सौतेला ही सही
मेरा सुत भी कहलाएगा
मेरे लिए यह खून पिएगा
दूसरों को मार के जिएगा
माँ का दूध नहीं इसके सर
खून चढ के बोलेगा
खुद रुलेगा दूसरों को रोलेगा
जननी की लाचारी थी
सौतन जो अत्याचारी थी
चाह कर न बचा पाई अपना ही जाया
सौतेली माँ ने ऐसा भरमाया
हाथ मे हथियार थमा दिया
और सौतेले सुत को
आतंकवादी बना दिया
खुद आतंकवाद की माँ बन बैठी
न जाने कितनी ही लाशें
उसके सम्मुख लेटीं
सौतेले सुत ने नाम चमका दिया
स्वंय को आतंकवादी बना दिया
जननी का कर्ज़ ऐसा चुकाया कि
उसकी कोख पर कलंक लगा दिया
सौतेली माँ को जिता दिया
और अपनी माँ को
आतंकवादी की माँ बना दिया

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4 दिस॰ 2008

हे कान्हा अब फिर से आओ

हे कान्हा अब फिर से आओ

हे कान्हा अब फिर से आओ
आकर भारत भू बचाओ
अपना दिया हुआ वचन निभा दो
आकर दुनिया को दिखला दो
आज तुम्हे हर आँख निहारे
हर जन की आत्मा पुकारे
एक कन्स के हेतु गिरधर
आए थे तुम भारत भू पर
राक्षसों का करके सफाया
तुमने अपना धर्म निभाया
देखो यह आतंकी रूप
कितना उसका चेहरा कुरूप
फैला रहे आतंकवाद
करने भारत भू बर्बाद
मारें निहत्थे लोग नादान
नही सुरक्षित किसी की जान
जिस धरती पर तुम खुद आए
गीता के उपदेश सुनाए
जिस भूमि का हर कण पावन
आ रहे वहाँ आतंकी रावण्
भरे हुए अब सबके नैन
नही किसी के मन मे चैन
हे दाऊ के भैया आओ
दाऊद के भाई समझाओ
नही तो समझाओ हर अर्जुन
मार मुकाएँ हर दुर्योधन
भेजे बहुत ही शान्ति दूत
पर न माने कोई कपूत
अहंकार वश मर जाएँगे
खत्म वो कुनबा कर जाएँगे
पर न समझेंगे यह बात
सत्य तो है हमारे साथ
सच्चाई की होगी जीत
नही फलेगी बुरी कोई नीत
दुश्मन के घर हम जाएँगे
अपना झण्डा फहराएँगे
हम भारत माँ की सन्तान
माँ के लिए दे देन्गे जान
करना कान्हा बस इतना करम
नही खत्म हो मानव धर्म
तुम सत्य के रथ पर रहना
हर अर्जुन को बस यह कहना
अपना सच्चा करम निभाओ
मन मे आशंका न लाओ
बस तुम इतना करो उपकार
न हों हमारे बुरे विचार
बुरा नहीं कोई इन्सान
सबमे बसता है भगवान
बुराई को हम जड से मिटाएँ
फर्ज़ की खातिर हम मिट जाएँ
तुम बस सत्य रथ को चलाना
अपना दिया हुआ वचन निभाना
देता है इतिहास गवाही
जब भी कोई हुई तबाही
सत्यवादी तब-तब कोई आया
आकर अत्याचार मिटाया
फिर से अत्याचार मिटाओ
हे कान्हा अब फिर से आओ

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1 दिस॰ 2008

शहीदों के घर........?

शहीदों के घर..............?

शहीदों के घर कुत्ते नहीं जाते
क्योंकि वहां पावन भावनाओं की
गंगा बहती है
और बहती गंगा मे
अगर हाथ धोने जाएँ भी
तो उन्हें कोई घुसने नहीं देता

आज़ाद भारत की समस्याएँ

यह कविता मैने तीन साल पहले लिखी थी त्रासदी यह है कि आज भीसमस्याएँ ज्यों की त्यों सुरसा की भान्ति मुँह फाडे खडी हैं

आज़ाद भारत की समस्याएँ
भारत की आज़ादी को वीरों ,
ने दिया है लाल रंग
वह लाल रंग क्यों बन रहा है ,
मानवता का काल रंग

आज़ादी हमने ली थी,
समस्याएँ मिटाने के लिए
सब ख़ुश रहें जी भर जियें,
जीवन है जीने के लिए

पर आज सुरसा की तरह ,
मुँह खोले समस्याएँ खड़ी
और हर तरफ़ चट्टान बन कर,
मार्ग में हैं ये अडी

अब कहाँ हनु शक्ति,
जो इस सुरसा का मुँह बंद करे
और वीरों की शहीदी ,
में नये वह रंग भरे

भूखमरी ,बीमारी, बेकारी ,
यहाँ घर कर रही
ये वही भारत भूमि है,
जो चिड़िया सोने की रही

विद्या की देवी भारती,
जो ग्यांन का भंडार है
अब उसी भारत धरा पर,
अनपढ़ता का प्रसार है

ज्ञान औ विज्ञान जग में,
भारत ने ही है दिया
वेदो की वाणी अमर वाणी,
को लुटा हमने दिया

वचन की खातिर जहाँ पर,
राज्य छोड़े जाते थे
प्राण बेशक तयाग दें,
पर प्रण न तोड़े जाते थे

वहीं झूठ ,लालच ,स्वार्थ का है,
राज्य फैला जा रहा
और लालची बन आदमी ,
बस वहशी बनता जा रहा

थोड़े से पैसे के लिए,
बहू को जलाया जाता है
माँ के द्वारा आज सुत का,
मोल लगाया जाता है

जहाँ बेटियों को देवियो के,
सद्रश पूजा जाता था
पुत्री धन पा कर मनुज ,
बस धन्य -धन्य हो जाता था

वहीं पुत्री को अब जन्म से,
पहले ही मारा जाता है
माँ -बाप से बेटी का वध,
कैसे सहारा जाता है ?

राजनीति भी जहाँ की,
विश्व में आदर्श थी
राम राज्य में जहाँ
जनता सदा ही हर्ष थी

ऐसा राम राज्य जिसमे,
सबसे उचित व्यवहार था
न कोई छोटा न बड़ा ,
न कोई आत्याचार था

न जाति -पाति न किसी,
कुप्रथा का बोलबाला था,
न चोरी -लाचारी , जहा पर,
रात भी उजाला था

आज उसी भारत में ,
भ्रषटा चार का बोलबाला है
रात्रि तो क्या अब यहाँ पर,
दिन भी काला काला है

हो गई वह राजनीति ,
भी भ्रष्ट इस देश में
राज्य था जिसने किया ,
बस सत्य के ही वेश में

मज़हब ,धर्म के नाम पर,
अब सिर भी फोड़े जाते हैं
मस्जिद कहीं टूटी ,कहीं,
मंदिर ही तोड़े जाते हैं

अब धर्म के नाम पर,
आतंक फैला देश में
स्वार्थी कुछ तत्व ऐसे,
घूमते हर वेश में

आदमी ही आदमी का,
ख़ून पीता जा रहा
प्यार का बंधन यहाँ पर,
तनिक भी तो न रहा

कुदरत की संपदा का भारत,
वह अपार भंडार था
कण-कण में सुंदरता का ,
चहुँ ओर ही प्रसार था

बख़्शा नहीं है उसको भी,
हम नष्ट उसको कर रहे
स्वार्थ वश हो आज हम,
नियम प्रकृति के तोड़ते

कुदरत भी अपनी लीला अब,
दिखला रही विनाश की
ऐसा लगे ज्यों धरती पर,
चद्दर बिछी हो लाश की

कहीं बाढ़ तो कहीं पानी को भी,
तरसते फिरते हैं लोग
भूकंप,सूनामी कहीं वर्षा हैं,
मानवता के रोग

ये समस्याएँ तो इतनी,
कि ख़त्म होती नहीं
पर दुख तो है इस बात का,
इक आँख भी रोती नहीं

हम ढूंढते उस शक्ति को,
जो भारत का उधार करे
और भारतीय ख़ुशहाल हों,
भारत के बन कर ही रहें
भारत के बन कर ही रहें