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26 मार्च 2009

नही जाना मुझे रवि के पार

जब से कविता लिखने का मोह मन में पाला है
या कहें कि होश संभाला है
सुनती आई बडी पुरानी वाणी
एक कवि की जीवन कहानी
जहां रवि नहीं जा पाता है
वहां कवि पहुँच जाता है
बुन लेता है कल्पनाओं की चादर
चढा लेता है भावनाओं का मुल्लमा
गढ लेता है नए शब्द
हृदय के गर्भाश्य मे पाल लेता है
नन्हे शिशु की भान्ति
कोई कोमल सा भाव
सहता है जनन की पीडा और
देता है जन्म नाजुक सी कविता को
फिर छोड देता है अपनी
मासूम कविता रूपी कन्या को
बिन ब्याही माँ की भान्ति ही
दुनिया के रहमो-करम पर
कोई उसे अपनाता है
तो कोई ठुकराता है
पर कवि अपनी मस्ती मे
फिर से नया गीत गाता है
सोचा था मै भी कवि बन जाऊँगी
फिर रवि के उस पार जाऊँगी
पर जैसे ही मैने कदम बढाया
चारों ओर भूखमरी, गरीबी ,बीमारी
बेकारी---को पाया
तो स्वयं ही अपना कदम पीछे हटाया
नहीं कर सकती इन सबका तिरस्कार
नहीं ओढ सकती कल्पनाओं का मुल्लमा
नहीं पहना सकती उनको शब्दों का जामा
छोड दिया है मैने कवि बनने का विचार
नही जाना मुझे किसी रवि के पार
************************************

16 मार्च 2009

नारी-परीक्षा

नारी-परीक्षा

मत लेना कोई परीक्षा अब

मेरे सब्र की

बहुत सह लिया

अब न सहेन्गे

हम अपने आप को

सीता न कहेन्गे

न ही तुम राम हो

जो तोड सको शिव-धनुष

या फिर डाल सको पत्थरो मे जान

नही बन्धना अब मुझे

किसी लक्षमण रेखा मे

यह रेखाएँ पार कर ली थी सीता ने

भले ही गुजरी वो

अग्नि परीक्षा की ज्वाला से

भले ही भटकी वो जन्गल-जन्गल

भले ही मिला सब का तिरस्कार

पर कर दिया उसने नारी को आगाह

कि तोड दो सब सीमाएँ

अब नही देना कोई परीक्षा

अपनी पावनता की

नही सहना कोई अत्याचार

बदल दो अब अपने विचार

नारी नही है बेचारी

न ही किस्मत की मारी

वह तो आधार है इस जगत का

वह तो शक्ति है नर की

आधुनिक नारी हूँ मै

नही शर्म की मारी हूँ मै

बना ली है अब मैने अपनी सीमाएँ

जिसकी रेखा पर

कदम रखने से

हो सकता है तुम्हारा भी अपहरण

या फिर मै भी दे सकती हूँ

तुम्हे देश-निकाला

कर सकती हूँ तुम्हारा बहिष्कार

या फिर तुम्हे भी देनी पड सकती है

कोई अग्नि परीक्षा

*******************

13 मार्च 2009

महानगर की होली

महानगर की होली


होली आई होली आई
मुन्ने की नजरें ललचाई
देख पिचकारी और गुलाल
पाया जा घर में धमाल
ले दो मुझको भी गुलाल
करूँगा रंगों से कमाल
माँ ने ला दी एक पिचकारी
पानी ही से भर दी सारी
साथ में दी दी चेतावनी
देखो वेस्ट न करना पानी
साठ रुपये का लीटर बीस
पानी के दाम से निकले चीस
कई बार तो मारे प्यास
पिलाएँ उसे जो आएँ खास
बाथ का पानी अलग मँगवाएँ
दस ही दिन में सम्ब भरवाएँ
एक माह में टैंकर तीन
बरतें पानी ज्यों कोई दीन
देखो जो तुम रंग डारोगे
खुद को और घर गंदा करोगे
रंगों में पानी डालोगे
फिर दीवाल को रंग डालोगे
नष्ट करोगे नहाकर पानी
बिगड़ेगी अपनी बजट कहानी
पेंट के पैसे भरने पडेंगे
मालिक के ताने भी मिलेंगे
दिखाओ तुम भी इमानदारी
पानी की एक ही पिचकारी
समझ लो तुम इसी को रंग
नहीं खेलना दोस्तों के संग
यह है महा-नगर मेरे लाल
उड़ते नहीं हैं यहां गुलाल
कौन कहां और किसकी होली
पैसे की यहां लगती बोली
तुम भी यह समझ जाओगे
रंग न फिर कोई लाओगे
नहीं किसी का कोई हमजोली
यह है महा-नगर की होली

आप इसे कविता/ अकविता , लेख/आलेख , कहानी कुछ भी कह सकते हैं लेकिन मेरे लिए यह महा-नगरीय जीवन की कड़वी सच्चाई है

-सीमा सचदेव

8 मार्च 2009

मै नारी........

अंतर्राष्ट्रीय नारी दिवस पर विश्व भर की सभी महिलाओं को हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएं

नारी दिवस का नारा

१. जब नारी में शक्ति सारी
फिर क्यों नारी हो बेचारी
२. नारी का जो करे अपमान
जान उसे नर पशु समान
३.हर आंगन की शोभा नारी
उससे ही बसे दुनिया प्यारी
४.राजाओं की भी जो माता
क्यों हीन उसे समझा जाता
५.अबला नहीं नारी है सबला
करती रहती जो सबका भला
६.नारी को जो शक्ति मानो
सुख मिले बात सच्ची जानो
७.क्यों नारी पर ही सब बंधन
वह मानवी , नहीं व्यक्तिगत धन
८.सुता बहु कभी माँ बनकर
सबके ही सुख-दुख को सहकर
अपने सब फर्ज़ निभाती है
तभी तो नारी कहलाती है
९.आंचल में ममता लिए हुए
नैनों से आंसु पिए हुए
सौंप दे जो पूरा जीवन
फिर क्यों आहत हो उसका मन
१०.नारी ही शक्ति है नर की
नारी ही है शोभा घर की
जो उसे उचित सम्मान मिले
घर में खुशियों के फूल खिलें
११.नारी सीता नारी काली
नारी ही प्रेम करने वाली
नारी कोमल नारी कठोर
नारी बिन नर का कहां छोर
१२.नर सम अधिकारिणी है नारी
वो भी जीने की अधिकारी
कुछ उसके भी अपने सपने
क्यों रौंदें उन्हें उसके अपने
१३.क्यों त्याग करे नारी केवल
क्यों नर दिखलाए झूठा बल
नारी जो जिद्द पर आ जाए
अबला से चण्डी बन जाए
उस पर न करो कोई अत्याचार
तो सुखी रहेगा घर-परिवार
१४.जिसने बस त्याग ही त्याग किए
जो बस दूसरों के लिए जिए
फिर क्यों उसको धिक्कार दो
उसे जीने का अधिकार दो
१५.नारी दिवस बस एक दिवस
क्यों नारी के नाम मनाना है
हर दिन हर पल नारी उत्तम
मानो , यह न्या ज़माना है


मै नारी.........


मैं नारी सदियों से
स्व अस्तित्व की खोज में
फिरती हूँ मारी-मारी
कोई न मुझको माने जन
सब ने समझा व्यक्तिगत धन
जनक के घर में कन्या धन
दान दे मुझको किया अर्पण
जब जन्मी मुझको समझा कर्ज़
दानी बन अपना निभाया फर्ज़
साथ में कुछ उपहार दिए
अपने सब कर्ज़ उतार दिए
सौंप दिया किसी को जीवन
कन्या से बन गई पत्नी धन
समझा जहां पैरों की दासी
अवांछित ज्यों कोई खाना बासी
जब चाहा मुझको अपनाया
मन न माना तो ठुकराया
मेरी चाहत को भुला दिया
कांटों की सेज़ पे सुला दिया
मार दी मेरी हर चाहत
हर क्षण ही होती रही आहत
माँ बनकर जब मैनें जाना
थोडा तो खुद को पहिचाना
फिर भी बन गई मैं मातृ धन
नहीं रहा कोई खुद का जीवन
चलती रही पर पथ अनजाना
बस गुमनामी में खो जाना
कभी आई थी सीता बनकर
पछताई मृगेच्छा कर कर
लांघी क्या इक सीमा मैने
हर युग में मिले मुझको ताने
राधा बनकर मैं ही रोई
भटकी वन वन खोई खोई
कभी पांचाली बनकर रोई
पतियों ने मर्यादा खोई
दांव पे मुझको लगा दिया
अपना छोटापन दिखा दिया
मैं रोती रही चिल्लाती रही
पतिव्रता स्वयं को बताती रही
भरी सभा में बैठे पांच पति
की गई मेरी ऐसी दुर्गति
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
बस मुझ पर ही कलंक लागा
फिर बन आई झांसी रानी
नारी से बन गई मर्दानी
अब गीत मेरे सब गाते हैं
किस्से लिख-लिख के सुनाते हैं
मैने तो उठा लिया बीडा
पर नहीं दिखी मेरी पीडा
न देखा मैनें स्व यौवन
विधवापन में खोया बचपन
न माँ बनी मै माँ बनकर
सोई कांटों की सेज़ जाकर
हर युग ने मुझको तरसाया
भावना ने मुझे मेरी बहकाया
कभी कटु कभी मैं बेचारी
हर युग में मै भटकी नारी
*********************************
मेरा प्रणाम है पहली नारी सीता को जिसने एक सीमा (लक्ष्मण रेखा ) को तोडकर
भले ही जीवन भर अथाह दुख सहे लेकिन आधुनिक नारी को आजादी का मार्ग दिखा दिया


धन्य हो तुम माँ सीता
तुमने नारी का मन जीता
बढाया था तुमने पहला कदम
जीवन भर मिला तुम्हें बस गम
पर नई राह तो दिखला दी
नारी को आज़ादी सिखला दी
तोडा था तुमने इक बंधन
और बदल दिया नारी जीवन
तुमने ही नव-पथ दिखलाया
नारी का परिचय करवाया
तुमने ही दिया नारी को नाम
हे माँ तुझे मेरा प्रणाम

***************************************

मै नारी.........

अंतर्राष्ट्रीय नारी दिवस पर विश्व भर की सभी महिलाओं को हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएं

नारी दिवस का नारा

१. जब नारी में शक्ति सारी
फिर क्यों नारी हो बेचारी
२. नारी का जो करे अपमान
जान उसे नर पशु समान
३.हर आंगन की शोभा नारी
उससे ही बसे दुनिया प्यारी
४.राजाओं की भी जो माता
क्यों हीन उसे समझा जाता
५.अबला नहीं नारी है सबला
करती रहती जो सबका भला
६.नारी को जो शक्ति मानो
सुख मिले बात सच्ची जानो
७.क्यों नारी पर ही सब बंधन
वह मानवी , नहीं व्यक्तिगत धन
८.सुता बहु कभी माँ बनकर
सबके ही सुख-दुख को सहकर
अपने सब फर्ज़ निभाती है
तभी तो नारी कहलाती है
९.आंचल में ममता लिए हुए
नैनों से आंसु पिए हुए
सौंप दे जो पूरा जीवन
फिर क्यों आहत हो उसका मन
१०.नारी ही शक्ति है नर की
नारी ही है शोभा घर की
जो उसे उचित सम्मान मिले
घर में खुशियों के फूल खिलें
११.नारी सीता नारी काली
नारी ही प्रेम करने वाली
नारी कोमल नारी कठोर
नारी बिन नर का कहां छोर
१२.नर सम अधिकारिणी है नारी
वो भी जीने की अधिकारी
कुछ उसके भी अपने सपने
क्यों रौंदें उन्हें उसके अपने
१३.क्यों त्याग करे नारी केवल
क्यों नर दिखलाए झूठा बल
नारी जो जिद्द पर आ जाए
अबला से चण्डी बन जाए
उस पर न करो कोई अत्याचार
तो सुखी रहेगा घर-परिवार
१४.जिसने बस त्याग ही त्याग किए
जो बस दूसरों के लिए जिए
फिर क्यों उसको धिक्कार दो
उसे जीने का अधिकार दो
१५.नारी दिवस बस एक दिवस
क्यों नारी के नाम मनाना है
हर दिन हर पल नारी उत्तम
मानो , यह न्या ज़माना है





मैं नारी सदियों से
स्व अस्तित्व की खोज में
फिरती हूँ मारी-मारी
कोई न मुझको माने जन
सब ने समझा व्यक्तिगत धन
जनक के घर में कन्या धन
दान दे मुझको किया अर्पण
जब जन्मी मुझको समझा कर्ज़
दानी बन अपना निभाया फर्ज़
साथ में कुछ उपहार दिए
अपने सब कर्ज़ उतार दिए
सौंप दिया किसी को जीवन
कन्या से बन गई पत्नी धन
समझा जहां पैरों की दासी
अवांछित ज्यों कोई खाना बासी
जब चाहा मुझको अपनाया
मन न माना तो ठुकराया
मेरी चाहत को भुला दिया
कांटों की सेज़ पे सुला दिया
मार दी मेरी हर चाहत
हर क्षण ही होती रही आहत
माँ बनकर जब मैनें जाना
थोडा तो खुद को पहिचाना
फिर भी बन गई मैं मातृ धन
नहीं रहा कोई खुद का जीवन
चलती रही पर पथ अनजाना
बस गुमनामी में खो जाना
कभी आई थी सीता बनकर
पछताई मृगेच्छा कर कर
लांघी क्या इक सीमा मैने
हर युग में मिले मुझको ताने
राधा बनकर मैं ही रोई
भटकी वन वन खोई खोई
कभी पांचाली बनकर रोई
पतियों ने मर्यादा खोई
दांव पे मुझको लगा दिया
अपना छोटापन दिखा दिया
मैं रोती रही चिल्लाती रही
पतिव्रता स्वयं को बताती रही
भरी सभा में बैठे पांच पति
की गई मेरी ऐसी दुर्गति
नहीं किसी का पुरुषत्व जागा
बस मुझ पर ही कलंक लागा
फिर बन आई झांसी रानी
नारी से बन गई मर्दानी
अब गीत मेरे सब गाते हैं
किस्से लिख-लिख के सुनाते हैं
मैने तो उठा लिया बीडा
पर नहीं दिखी मेरी पीडा
न देखा मैनें स्व यौवन
विधवापन में खोया बचपन
न माँ बनी मै माँ बनकर
सोई कांटों की सेज़ जाकर
हर युग ने मुझको तरसाया
भावना ने मुझे मेरी बहकाया
कभी कटु कभी मैं बेचारी
हर युग में मै भटकी नारी
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मेरा प्रणाम है पहली नारी सीता को जिसने एक सीमा (लक्ष्मण रेखा ) को तोडकर
भले ही जीवन भर अथाह दुख सहे लेकिन आधुनिक नारी को आजादी का मार्ग दिखा दिया


धन्य हो तुम माँ सीता
तुमने नारी का मन जीता
बढाया था तुमने पहला कदम
जीवन भर मिला तुम्हें बस गम
पर नई राह तो दिखला दी
नारी को आज़ादी सिखला दी
तोडा था तुमने इक बंधन
और बदल दिया नारी जीवन
तुमने ही नव-पथ दिखलाया
नारी का परिचय करवाया
तुमने ही दिया नारी को नाम
हे माँ तुझे मेरा प्रणाम

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5 मार्च 2009

हुआ क्या जो रात हुई

हुआ क्या जो रात हुई,
नई कौन सी बात हुई
दिन को ले गई सुख की आँधी,
दुखों की बरसात हुई
पर क्या दुख केवल दुख है,
बरसात भी तो अनुपम सुख है
बढ़ जाती है गरिमा दुख की,
जब सुख की चलती है आँधी
पर क्या बरसात के आने पर,
कहीं टिक पाती है आँधी
आँधी एक हवा का झोंका,
वर्षा निर्मल जल देती
आँधी करती मैला आँगन,
तो वर्षा पावन कर देती
आँधी करती सब उथल-पुथल,
वर्षा देती हरियाला तल
दिन है सुख तो दुख है रात,
सुख आँधी तो दुख है बरसात
दिन रात यूँ ही चलते रहते ,
थक गये हम तो कहते-कहते
पर ख़त्म नहीं ये बात हुई,
हुआ क्या जो रात हुई

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