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26 मार्च 2009

नही जाना मुझे रवि के पार

जब से कविता लिखने का मोह मन में पाला है
या कहें कि होश संभाला है
सुनती आई बडी पुरानी वाणी
एक कवि की जीवन कहानी
जहां रवि नहीं जा पाता है
वहां कवि पहुँच जाता है
बुन लेता है कल्पनाओं की चादर
चढा लेता है भावनाओं का मुल्लमा
गढ लेता है नए शब्द
हृदय के गर्भाश्य मे पाल लेता है
नन्हे शिशु की भान्ति
कोई कोमल सा भाव
सहता है जनन की पीडा और
देता है जन्म नाजुक सी कविता को
फिर छोड देता है अपनी
मासूम कविता रूपी कन्या को
बिन ब्याही माँ की भान्ति ही
दुनिया के रहमो-करम पर
कोई उसे अपनाता है
तो कोई ठुकराता है
पर कवि अपनी मस्ती मे
फिर से नया गीत गाता है
सोचा था मै भी कवि बन जाऊँगी
फिर रवि के उस पार जाऊँगी
पर जैसे ही मैने कदम बढाया
चारों ओर भूखमरी, गरीबी ,बीमारी
बेकारी---को पाया
तो स्वयं ही अपना कदम पीछे हटाया
नहीं कर सकती इन सबका तिरस्कार
नहीं ओढ सकती कल्पनाओं का मुल्लमा
नहीं पहना सकती उनको शब्दों का जामा
छोड दिया है मैने कवि बनने का विचार
नही जाना मुझे किसी रवि के पार
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8 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

वाह !!! बहुत ही सरल कोमल सुन्दर भाव.....सुन्दर कविता...

जहाँ न पहुंचे रवि,वहां पहुँचता कवि....इसलिए तो कहा गया है कि समस्त विषमताओं को मर्मस्पर्शी शब्दों का जामा पहना कवि उसे अत्यंत प्रभावी ढंग से ह्रदय तक पहुंचा सकता है....
कविता कल्पना के महल बना सकती है तो आन्याय के महल को ध्वस्त भी करवा सकती है.....

अनिल कान्त ने कहा…

बेहतरीन कविता ...भाव बहुत अच्छे थे .....अन्याय से लड़ना भी ये शब्द ही सिखाते हैं कभी कभी

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Kavi Kulwant ने कहा…

bahut khoob!
can you please post my poem tomorrow in the Baal udyaan saved in the draft...? kulwant

Vinay ने कहा…

अति सुन्दर!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना.....बधाई

MANVINDER BHIMBER ने कहा…

नहीं ओढ सकती कल्पनाओं का मुल्लमा
नहीं पहना सकती उनको शब्दों का जामा
छोड दिया है मैने कवि बनने का विचार
नही जाना मुझे किसी रवि के पार
सुन्दर कविता...

दर्पण साह ने कहा…

Waah....
Mat jaiye ravi ke paar...
lekin jahan se ravi ka uday hota hai uske paar jaane mein apka kya khayal hai:
प्राची के पार
Jaiyega zarror.....

संगीता पुरी ने कहा…

वाह !! बहुत सुंदर रचना ...