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30 अप्रैल 2009

जूते का निशाना


जूते ने अब जो अपना सर उठाया है
पैरों से निकल जो बाहर को आया है
अपनी हस्ती को मिटाया है
तो पूरी दुनिया में छाया है
जिसकी नियति थी पैरों तले रहना
अब बन गया लोकप्रियता का गहना
पैरों से निकाल जूता सभा में चलाते हैं
चन्द पलों मे दुनिया में छा जाते हैं
विद्वान जो काम ताउम्र न कर पाते हैं
वही जूते चंद लमहों में कर जाते हैं
लोकप्रियता का सस्ता और टिकाऊ तरीका
जूता फ़ैंकने का सलीका
मशहूरी की सौ प्रतिशत गारण्टी
जूता न टूटने की वारण्टी
बशर्ते कि जूता फ़ैंक निशानेबाज न हो
वो स्वामी के प्रति दगाबाज न हो
कुछ ही क्षणों में सारा काम हो जाता है
स्वामी और सेवक का नाम हो जाता है
पूरी उम्र जूते घिसाए ,किसी ने न जाना
वही जूता फ़ैंका तो सबने पहचाना
क्यूं हर बार चूकता है जूते का निशाना
या फ़िर आता नहीं जूता चलाना
फ़ैंकने से पहले सीख तो लो चलाना
फ़िर अपनी जूतांदाजी दिखाना
भरी सभा में जूते चलाना
और लगाना विश्वास से निशाना
फ़िर देखना कैसी आफ़त आएगी
जाने किस किस की नियति बदल जाएगी

17 अप्रैल 2009

मतदान अभियान







7 अप्रैल 2009

चुनाव अभियान

जैसे ही
चुनाव आयोग ने
चुनाव आचार सन्हिता का बिगुल बजाया

तो
नेता जी के शैतानी दिमाग़ ने
अपना अलग रास्ता बनाया

और
नेता जी को समझाया
अब छोडो मेरा साथ ,मेरा कहना
और कुछ दिन केवल
दिल के अधीन ही रहना

नेता जी
जो कभी-कभी
कविता लिखने का शौंक फरमाते थे

और
कभी-कभी अपने दिमाग़ के कारण
समीक्षक भी कहलाते थे

वही दिमाग
अब नेता जी को समझाता है

अरे !
चुनाव अभियान में
समीक्षक नहीँ
कवि ही काम आता है

कवि हो
तो उसका फायदा क्यो नहीँ उठाते
कुछ ऐसे नारे क्यों नहीँ बनाते

जिसमे हो
कुछ झूठे वादे,कसमे और लारे

जिसमे
फँस जाएँ भोले-भाले लोग बेचारे

बस
कुछ दिन मे तो
चुनाव खतम हो जायेगी

और
तेरी-मेरी फिर से
मुलाकात हो जाएगी

फिर
हम दोनो मिलकर करेंगे राज
और करेंगे दिल के मरीजों का इलाज

नेता जी
घबराये और बोले
तेरे बिना मै क्या कर पाऊँगा?
यूँ ही दिल के हाथो मर जाऊँगा

अरे!
मेरे होते तू क्यों घबराता है?
नेता का दिल भी तो
उसका दिमाग़ ही चलाता है

बस
फरक सिर्फ इतना है
कि दिल को थोड़े दिन्
रखना दिमाग से आगे

और
देखना लोग आएँगे
तुम्हारे पीछे भागे-भागे

बस
उनको दिल कि बातों से
बस में करना

और
दिमाग से नामान्कन भरना

होगा
तो वही जो तुम चाहोगे

पहले भी
लोगो को मूर्ख बनाया
आगे भी बनायोगे

जीतोगे
और तुम्हे सम्मान भी मिल जायेगा
लोगों की मूर्खता का
प्रमाण मिल जायेगा

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लेकिन
इस बार नेता जी के
दिमाग़ ने धोखा खाया
लोगो ने अपना दिमाग चलाया

और
नेता जी को
बाहर का रास्ता दिखाया

नेता जी
जो स्वयम को समझते थे
समाज का आईना

अब
स्वयम को
समाज के आईने मे पाया

1 अप्रैल 2009

जीवन एक कैनवस

दिन -रात,सुख-दुख ,खुशी -गम

निरन्तर
भरते रहते अपने रन्ग

बनती -बिगडती
उभरती-मिटती तस्वीरो मे

समय के साथ
परिपक्व होती लकीरो मे

स्याह बालो मे
गहराई आँखो मे

अनुभव से
परिपूर्ण विचारो मे

बदलते
वक़्त के साथ
कभी निखरते

जिसमे
स्माए हो
रन्ग बिरन्गे फूल

कभी
धुँधला जाते

जिस पर
जमी हो हालात की धूल

यही
उभरते -मिटते
चित्रो का स्वरूप

देता है सन्देश
कि
जीवन है एक कैनवस

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