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19 अप्रैल 2010

. मैं और तन्हाई - भाग ३.

. मैं और तन्हाई - भाग १
. मैं और तन्हाई - भाग 2

मुझे देख अकेला तन्हाई


चोरी से क्यों तू चली आई

नहीं तेरा मेरा साथ कभी

मेरे पास तो होंगे अपने सभी

नही चाहिए मुझे तुमसे साथी

जाओ ढूंढो अपने नाती

नहीं मुझे चाहिए साथ तेरा

मेरे पास तो है घर-बार मेरा

मैं इंसां और तू परछाई

क्यों आई यहां तू तन्हाई

6 अप्रैल 2010

मैं और तन्हाई - भाग २

मैं और तन्हाई - भाग १

काला अंधियारा सन्नाटा
इक आहट नें उसको काटा
न जाने कहां से आई थी
इक धुंधली सी परछाई थी
बोली मैं साथ निभाऊंगी
तुम्हें छोड कभी न जाऊंगी
मैं चिल्लाई और झल्लाई
पर ढीठ थी कितनी परछाई
मैं रोती रही वो हंसती रही
हंस-हंस कर मुझको डसती रही
छलनी कर गई मेरा सीना
दूभर कर गई मेरा जीना
नहीं पास तू मेरे रह सकती
किसी एक को मैं दूंगी मुक्ति
वो खिल-खिल हंस दी सुन के बात
सूनेपन में देती हूं साथ
तभी तो मैं पास तेरे आई
और नाम है मेरा तन्हाई

क्रमश:

1 अप्रैल 2010

मां - चन्द क्षणिकाएं

१.मां मैं जब भी मिलती हूं तुमसे
पहले से कमजोर ही दिखती हूं तुम्हें
यह तुम्हारी नज़र का धोखा है
या नज़र कमजोर है

२.मां तुम बातों ही बातों में
उगलवा लेना चाहती हो
मेरे सीने में दफ़न सच्चाई को
कितनी भोली और
मासूम हो तुम

३.दूर से आवाज़ सुन
जान लेती हो सबकुछ
तुम्हारा अंदाज़
कभी गलत नहीं होता
सत्य नापने वाली मशीन
हो क्या तुम ?

४. मैं रोती रही देर रात तक
सिराहने को तुम्हारी गोदि समझ
सो गई आराम से
पर आंखें तुम्हारी क्यों लाल हैं

५. कल रात मैनें खाना न खाया
किसी को भी न बताया
तुम क्यों उठ गई खाना छोडकर
भूख न होने का बहाना बनाकर

६. अपनें शब्दों से छू लेती हो
मेरे मन के घाव
इतनी दूरी से भी
कितनी आसानी से तुम
यह कला कहां से सीखी तुमने ?

७.कितने ही दर्द भाग जाते हैं
तुम्हारे स्पर्श भर से
कौन सा बाल्म लगाती हो
अपने स्नेहिल हाथों में ?

८.मेरे बालों में चलती
धीरे-धीरे तुम्हारी उंगलियां
हर गम भुला सुला देती हैं
क्या चुंबकीय आकर्षण है
उंगलियों में निद्रा का ?

९. बाज़ार में चलते हर चीज़ में
तुम्हारी सोच मुझ तक ही
सीमित हो जाती है
क्या तुम्हारी अपनी
कोई इच्छाएं नहीं हैं ?

१०.अपने कितने ही गम
छुपा लेती हो बडी सफ़ाई से
अपनी गहरी आंखों के रास्ते
दिल के किसी कोने में
इतनी सहनशीलता
कहां से आई तुममें ?