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15 अग॰ 2010

आजादी दिवस – नारी ताडन की अधिकारी और पुरुष ……….?

नमस्कार ,

आप सबको आजादी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभ-कामनाएं | आजादी की चौन्सठवीं सालगिरह और सदी पूरी करने की तरफ तेज़ी से बढ़ते हमारे कदम | इन चौंसठ वर्षों में न जाने कितने उतार चढ़ाव आए होंगे और कुछ एक के तो भुक्त-भोगी हम भी हैं | जिस तरह हमारी सोच , हमारा रहन सहन , हमारे संस्कार , हमारी सभ्यता और यहाँ तक की रस्मों रिवाजों में भी विशालता आई है , उससे तो वास्तव में लगता है की हमारा देश दिन दुगुनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है और हमें गर्व है कि हम इस महान देश के नागरिक और भारत माँ की संतान हैं | एक युग बदल गया है लेकिन एक बात जिसे कहते हुए मुझे दुःख हो रहा है कि हमारी सोच आज भी उसमें संकीर्ण ही है | भाषण दिए जाते हैं , नारे बुलंद होते हैं , आवाज उठती है और जब वास्तविक रूप सामने आता है तो बदलाव के नाम पर होता कुछ भी नहीं , हंगामा अलग से खडा हो जाता है | इसमें नासमझ और कम पढ़े लिखे ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे लोगों की जमात भी शामिल है —-वो है नारी आज़ादी की बात | जिसे हमारा समाज आज भी अपना नहीं पाया है | बात सब करते हैं लेकिन सोच तो वही है कि —भगत सिंग जैसे वीर पैदा हों लेकिन पड़ोसी के घर में |
न जाने एक पंक्ति कविवर तुलसीदास जी की सब की जुबान पर कैसे घर कर गयी कि —-नारी ताडन की अधिकारी | भाव समझा नहीं बस शब्द हैं तो सच्चे तुलसी भक्त होने का सबूत तो देना ही है , ऐसा नहीं कि सबकी सोच एक जैसी है लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि ये सोच मध्यम वर्ग में ज्यादा देखने को मिलाती है | आज भी कुछ लोगों का मानना है कि नारी ताड़ना की ही अधिकारिणी है और अगर उसे समाज में रहना है तो उसे पुरुष द्वारा बनाए नियम -कानूनों का पालन करना ही होगा अगर नहीं करेगी तो जबरदस्ती करवाया जाएगा —–
क्यों , आखिर ये समाज के ठेकेदार क्यों भूल जाते हैं कि नारी भी इंसान है , उसकी भी सोच है , वह भी काबिलियत रखती है | क्यों आज भी कुछ लोग ये बात अपने गले से नहीं उतार पा रहे हैं कि नारी कोमल ही नहीं वीरांगना भी है और पुरुष की ताकत है | पुरुष और नारी जीवन रूपी गाडी के दो पहिए हैं , किसी एक के भी अभाव में दुसरे का कोइ मूल्य है ही नहीं , फिर क्यों पुरुषवादी समाज उसे पाँव की जूती बना कर रखना चाहता है | क्यों नहीं अपने अहम को मिटा नारी को बराबर का अधिकार दे सकता ?
भले ही नारी पर होने वाले जुल्मों के खिलाफ आवाज़ उठाई जाती रही है लेकिन सच्चाई ये है कि घरेलू हिंसा जिसमें अक्सर नारी प्रताड़ित होती है में कुछ भी फर्क नहीं पड़ता | इसके लिए जिम्मेदार कौन —-क्या नारी ? तो मैं कहूंगी हाँ बिलकुल नारी ही इस घरेलू हिंसा की जिम्मेदार है क्योंकि उसकी सोच विशाल है , असीमित सहनशीलता है , भावुकता है ….| हाँ यही कमियाँ हैं जो नारी को कमजोर बनाती हैं और यही उसकी ताकत भी है जिसके बल पर वह न जाने कितने जुल्म सह जाती है , अपने आंसू अन्दर ही पी जाती है और लम्बी आयु जी जाती है | क्या यही उसकी गलती है कि उसके अन्दर एक माँ की ममता है , एक कोमल ह्रदय है ? ये गुण तो नारी का गहना हैं , अगर यही गुण नारी में न होते तो न जाने दुनिया कैसी होती ? एक बात तो तय है कि दुनिया प्यार विहीन होती |
प्रश्न उठता है कि जब नारी पुरुष की ताकत है , नारी के बिना तो मानव जीवन का अस्तित्त्व ही संभव नहीं और नारी किसी पर तब तक जलम कर ही नहीं सकती जब तक उस पर कोइ जुल्म न हो | वह तो प्यार बाँट सकती है | खुद जल कर दूसरों का जीवन रौशन करती है , फिर भी उसे ताड़ना की अधिकारी ही क्यों माना जाता है | वह पुरुष ताड़ना का अधिकारी क्यों नहीं जो केवल अपने शारीरिक बल पर हृदयहीन होकर नारी पर जुल्म करता है ? क्या जो पुरुष करता है वह सब सही है ? क्या पुरुष के कुकृत्यों के लिए उसे ताड़ना नहीं चाहिए ?
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6 अग॰ 2010

जब पुरुष नें कहा तो कमाल हो गयी , नारी नें कहा तो वो छिनाल हो गयी..........?

बातों से निकली बात बात बेगानी हो गयी


दबी थी जो मस्तक में , अब कहानी हो गयी

अनभव को जीकर छोड़ दो

हर गम से नाता तोड़ दो

बोला जो एक शब्द भी

तो नादानी हो गयी

तुम सहती हो बस सहती रहो

कुछ कहना हो खुद से कहती रहो

कह दी जो मन की बात

तो बदजुबानी हो गयी

न पार करो अपनी सीमा

मुश्किल हो जाएगा जीना

लांघा जो एक कदम तो

इज्जत पानी हो गयी

नारी का घूंघट उतरा

तो धमाल हो गयी

कह दी जो मन की बात

तो वो छिनाल हो गयी

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जो कहना हो खुलकर बोलो

जब चाहे जहां भी जो खोलो

कह दी जो अपनी बात

तो सोच विशाल हो गयी

जब पुरुष नें कह दी बात

तो बात कमाल हो गयी ,

जब नारी उसी पे बोली

तो वो छिनाल हो गयी ..........



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