मेरी आवाज मे आपका स्वागत है |दीजिए मेरी आवाज को अपनी आवाज |

Website templates

4 मई 2011

लादेन तुम…………?




लादेन

अगर तुम ज़िंदा होते

तो आज आतंकवाद के आंसू

यूं ही जार-जार न रोते




न आतंकी

तुम्हारी समाधि का

सिन्धु की अपार गहराई में

डुबकी लगाकर ठिकाना ढूँढते



तुम्हारे कितने

दत्तक पुत्र तरस गए हैं

तुम्हारी एक ही झलक पाने को

क्या मुंह दिखाएँ जमाने को……?



vo दत्तक पुत्र

जिनको तुमने पाला पोसा

आतंकवाद की छाँव में

बाँध दी बेड़ियाँ जेहाद की पाँव में



जिनको तुमनें

औलाद सम दिया संरक्षण

बदले और नफ़रत की आग में

फूट पड़े उनके अश्रु तेरे विराग में



लादेन

तुम्हीं तो थे उनका सहारा

क्यों कर गए तुम उनसे किनारा

भरी दुनिया में क्यों बनाया उन्हें बेचारा



तुमनें अपनी

आख़िरी झलक तक न दिखाई

रात के स्याह अँधेरे में गुपचुप

ले ली क्यों अंतिम विदाई ….?



तुम्हारी

एक झलक को

पूरी दुनिया तरसती थी

तुम्हारी जान इतनी तो न सस्ती थी



तुमने जीवन भर

अनगिनत जुल्म किए

जाते-जाते एक भला कर जाते

मरना ही था तो

किसी को अरबपति बना

आराम से मर जाते



हाय रे लादेन

तुम क्यों न आए मेरे सामने ?

देखे थे मैनें भी कितने सपने

कि कभी हमारी मुलाक़ात हो जाएगी

फिर मुझ पर इनामों की बरसात हो जाएगी

मेरा दुनिया में नाम हो जाएगा

तुम्हारा तो कल्याण हो ही जाएगा


लादेन तुम सच में मुझे मिल जाते

तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता ?

हाँ मेरा अवश्य भला हो जाता

यह मेरा ही नहीं

जन-जन का ख़्वाब था

पर न जाने क्यों

सबका ही भाग्य खराब था

किसी की भी किस्मत नें साथ न निभाया

जब एक सुबह अचानक

तुम्हारी मौत का संदेशा आया

हम अपनी किस्मत को

कोसते ही रह गए

और तुम समंदर में समा गए

क्यों दे गए तुम धोखा ?

अपने चाहने वालो को

क्या करें तुम्हारे अपने

गोली बारूद के निवालों को ?

काश ! तुम ज़िंदा काबू जाते

तो शायद नफ़रत की आग

कभी न कभी तो बुझ जाती

तुम्हें देख तुम्हारे शिष्यों को

शायद कोइ शिक्षा मिल जाती

तुम्हारे साथ

न जाने कितने ही राज़

दफ़न हो गए तुम्हारे सीने में

जिनकी बदबू फ़ैली थी

आजीवन बहे तुम्हारे पसीने में

तुम ज़िंदा होते

तो शायद राज़ राज़ न रहते

तुम्हारी असमय म्रित्यु पर

स्वाल पे स्वाल न उठते

ऐसे स्वाल जिन पर

स्वाल तो उठते हैं

पर कोई जवाब नहीं आता

क्या था

तुम्हारा और नफ़रत का नाता

जिसकी आग में तुम

आजीवन जलते रहे

दूसरों को मारा

स्व्यं तिल तिल मरते रहे

काश ! तुम कभी उस आग से

बाहर निकल आते

तो दुनिया को खूबसूरत पाते

प्यार से रहते प्यार सिखाते

तुम मर नहीं अमर हो जाते

काश! लादेन तुम जिन्दा पकडे जाते…..

…………………………..

…………………………..?

7 अप्रैल 2011

कौन कहता है जानवर कम हुए ..प्लीज़ सुझाव दें




जानवर -कुदरत का अनमोल रत्न और ऐसी सृजना जो किसी मानव के बस की बात ही नहीं
न जाने स्वार्थवश हम इन बेजुबान निर्दोष जानवरों को ही क्यों पशु की श्रेणी में रखते हैं जबकि ये तो किसी न किसी तरह मानव के काम ही आते हैं और तब तक हिंसक नहीं होते जब तक उन्हें हिंसक बनाया न जाए
ये कभी अपनी मर्यादाओं का हनन नहीं करते और सबसे बड़ी बात जो जन्मजात होते हैं वही भीतर/बाहर से होते भी हैं कोइ झूठा मुल्लमा ओढ़ कर नहीं चलते
दिखावे की दुनिया से बिलकुल अलग कितना स्वच्छ और सीधा-सादा जीवन जीते हैं ये जीव
शायद धरती की शोभा बढाने हेतु ही कुदरत नें इन जीवों का निर्माण किया होगा
कुदरत की बनाई तो हर चीज़ अनूठी ही है और हर संरचना के पीछे क्या गहरा राज़ छुपा है वह समझना तो सचमुच अंडा या मुर्गी पहले समझने वाले बात की तरह दुर्लभ है लेकिन मानव निजाद जिस प्रजाति का विकास तेज़ी से हो रहा है वह तो लगता है कुदरत के भी हर नियम क़ानून को पीछे छोड़ देगा और कभी मानव का उस ईश्वर रूपी अदृश्य शक्ति से सामना हुआ तो अवश्य ही मानव अपना सीना तान के कहेगा ” देखा मैं सर्वश्रेष्ठ रचनाकार हूँ , दम है तो बाहर निकल और मेरा सामना कर ” और उस समय लगता है ईश्वर भी हाथ जोड़ अपनी ही देN मानव के सामने गिडगिडा रहा होगा-” माफ़ करदो मुझे , तुम्हारे जैसी समझ और सोच के आगे मैं नतमस्तक हूँ और मैं अपनी हार स्वीकार करता हूँ ”




अपने आस-पास राह चलते आजकल अकसर ऐसी प्रजाति के जानवरो से सामना हो जाता है और हम उनकी मानसिकता को समझ ही नही पाते । न जाने क्यो लालच ने हमें इतना अन्धा बना दिया है कि हम हर मर्यादा , हर संस्कार , हर आदर को भूल जाते हैं । क्यों हमारे कोई सामाजिक मूल्य ही नहीं रह गए । अभी पिछले हफ़्ते की ही बात है कि हम वीकेण्ड में घूमने-फ़िरने के मूड में सुबह घर से निकले । पैट्रोल बंक पर लाईन में लगे हुए थे कि पीछे से आकर किसी नें इतनी जबर्दस्त टक्कर मारी कि हम लोग बाल-बाल बचे । खडी गाडी में ऐसे हुआ तो अगर चलती गाडी में ऐसा होता तो न जाने हमारी क्या हालत होती । बस गाडी से बाहर निकलते ही उसने क्षमा याचना की और रिपेयर का फ़ुल खर्च देने की बात कहकर हमें पुलिस में न जाने के लिए उसनें मना ही लिया । उसके साथ उसकी मां पत्नी और पांच-छ्ह साल का बेटा भी था । मुझे उसकी मां की शक्ल कुछ जानी पहचानी लगी । थोडा दिमाग पर जोर लगाया तो ध्यान आया कि वह मिसेज़ शान्ति मेरे बेटे के स्कूल ( एयरफ़ोर्स , ए.वी.कैम्प्स , बंगलोर )में प्राएमरी टीचर हैं । हालांकि वो मेरे बेटे को पढाती नहीं हैं और मैनें केवल उनको आते-जाते देखा ही है , फ़िर भी हमनें थोडा नर्म रुख अपनाया । गलती तो गल्ती है चाहे किसी से भी हो और अगर गल्ती हो गई है ( चाहे अनजाने में ही ) उसको मानना तो चाहिए ही । वह भी हमारे साथ सर्विस स्टेशन चलने के लिए तैयार हो गया और अपनी मां और बेटे को घर छोड पत्नी के साथ हमारे साथ गया । बातों बातों में पता चला कि उसकी पत्नी प्रसन्ना प्रकाश डी. पी.एस. ( दिल्ली पब्लिक स्कूल ईस्ट बंगलोर )में टीचर है और स्वयं ए.ओ.एल. कम्पनी में कार्यरत है । मतलब अच्छी खासी आमदन है । जब पता चला कि गाडी की रिपेयर में तकरीबन पंद्रह हज़ार तक का खर्च आएगा तो भी उसनें यही कहा कि आप गाडी ठीक करवाईये मैं खर्च दूंगा , कहकर वह वहां से खिसक लिया । हमें तो अपनी गाडी ठीक करवानी ही थी , सो तीन-चार दिन में गाडी ठीक हो घर आ गई । चूंकि हर गाडी का इन्शोरेंस रहती ही है तो हमें भी अपने पास से ज्यादा खर्च नहीं करने पडे लेकिन उसके लिए जो हम मानसिक तनाव में रहे और बीस किलोमीटर दूर जाने आने में जितना हम खराब हुए उसकी कोई कीमत नहीं है । हमारा पुलिस में न जाना हमारी सबसे बडी भूल थी या फ़िर बच्चे के स्कूल की टीचर को देखकर हमें उसे सम्मान देना ( जिसके काबिल वह नहीं थी ) बडी भूल थी , लेकिन हमनें जो किया अपनी तरफ़ से अच्छा किया और सोच भी लिया कि उससे खर्च अवश्य लेंगे और अपाहिज अनाथ बच्चों के लिए उसे खर्च कर देंगे । लेकिन उन बच्चों की किस्मत में ये नहीं था , उसनें खर्च देने से साफ़ मना कर दिया । यह तर्क देकर कि कानून के अनुसार हर गाडी का बीमा होता है । अब मैं सोचने पर मजबूर थी कि माना हर गाडी का बीमा होता है लेकिन तुम क्या जानवर हो कि कहीं भी किसी भी गाडी को जबरदस्ती टक्कर मारो और तुम्हारे लिए बीमा कम्पनी खर्च उठाएगी और कानूनन तुम्हें कोई सज़ा नहीं मिलेगी , क्योंकि तुम तो हो ही जानवर , जिसे सडकों पर आवारा घूमने की आज़ादी है । उससे भी बढकर मुझे निराशा हुई कि क्या कोई टीचर भी ऐसी हो सकती है ,वो भी डिफ़ेंस के रेपुटिड स्कूल की टीचर , जहां अनुशासन , सभ्याचार और मर्यादा का पाठ पढाया जाता है वो अपने बेटे को अच्छे संस्कार नहीं दे पाई TO वो इतने सारे बच्चों को क्या बनने के लिए ट्रेनिंग दे रही है ? कल को अगर मेरे बेटे की कक्षा में आएगी तो क्या सिखाएगी ?

क्या हम बच्चों को ऐसे हाथों में सौंप सकते हैं ?

क्या अनजाने में ही बच्चों को सामाजिक जानवर बनने की शिक्षा नहीं मिल रही है ?

दुख की बात है कि ऐसे सामाजिक जानव्र रक्तबीज की तरह दिन दौगुने रात चौगुने बढ ही रहे हैं । शायद कभी कोई चण्डी फ़िर से आए और कम से कम भारत भूमि को तो ऐसे सामाजिक जानवरों से बचा ले ।

मै अब भी चाहती हूं कि उसे उसकी गलती की सज़ा न सही बल्कि कुछ बच्चों की भलाई के लिए अपनी गलती का अहसास करना ही चाहिए । क्या आप मुझे सुझाव दे सकते हैं कि मुझे क्या करना चाहिए ऐसे घूमते फ़िरते आवारा सामाजिक जानवर के साथ ?

उसका पता और मोबाईल नम्बर है-



PRAKASH



House no. – 38



Munniakollala – Near last bus stop



MARATHALLI -post



BANGALORE- 560037



MOB. NO. – 9980655772



Gaadi no.- KA 03 MK 9217