पापा ………………………………..
तुम्हारी साँसों में
धडकन सी थी मैं ,
जीवन की गहराई में
बचपन सी थी मैं ।
तुम्हारे हर शब्द का
अर्थ मैं ,
तुम्हारे बिना व्यर्थ
मैं ,
तुम्हारी हर आशा ,
मुस्कान मैं
तुम्हारे रहते
हर गम से अनजान मैं
।
तुम्हीं मेरी दुनियादारी
थे ,
निराशा में आशा की
चिंगारी थे ।
तुम्हारा विश्वास
हर गम भुला देता था
घनघोर तम भी
रोशनी दिखा देता था
।
जाने तुम कैसे मुस्काते
थे ?
न जाने कितना दर्द
छुपाते थे ।
मैं तुम्हारी हर पीडा
से अनजान थी ,
तुम्हारे आगे मैं कितनी
नादान थी ।
जाने फ़िर भी तुम क्यों
इतराते थे ?
कैसे मुझे अपनी शेरनी
बताते थे ?
तुम्हारे बिना जिंदगी
बेकार लगती है ,
सच कहुँ , तो सांसे
भी भार लगती हैं ।
मेरे लिए तो धरती पर
,
बस तुम्हीं एक इनसान
थे ,
अगर कोई भगवान है
,
तो तुम उसके भी भगवान
थे ।
कैसे कहुँ , तुम क्या
थे ?
हर शब्द छोटा पड जाता
है ।
तुम्हारी आँखों का
भोलापन ,
बहुत याद आता है ।
तुम्हारी बचपन सी मासूमियत
,
हर पल तडपाती है ,
पापा ,
तुम्हारी बहुत याद
आती है ।
तुम कभी ख्यालों से
जाते नहीं ,
तुम क्यों लौटकर आते
नहीं ?
काश ! मैं सच में शेरनी
बन जाती ,
और तुम्हें जाने से
रोक पाती ।
तरस गई हूँ , तुम्हारी
आवाज़ को ,
मुझे पुकारने वाले
, उस अंदाज़ को ।
तुम्हारे बिना कुछ
अच्छा नहीं लगता ,
भीड भरी दुनिया में
,
कोई सच्चा नहीं लगता
।
तुम्हारे जाने से लगता
है ,
दुनिया से सारे भले
गए
पापा ,
तुम हमसे दूर क्यों
चले गए ?
पापा , तुम क्यों चले
गए ?