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28 जुल॰ 2020

विदाई

पुत्री की बस एक ही बार , विदाई नहीं होती |
माँ-बाप के होते वो कभी , पराई नहीं होती |
हर बार वही ममता , वही तो भाव आता है ,
पुत्री का अपने घर से , कैसा गहरा नाता है ?
हँसती है खिलखिला के , जब खुशियाँ महकती हैं |
यों लगे बगिया में ज्यों , चिड़ियाँ चहकती हैं |
परियों सी लाडली वो , पापा की दुलारी है |
उसकी हँसी में बस गई , कायानात सारी है |
कैसे पराई एक ही , दिन में हो जाती है ?
बस यही इक बात , मन ही मन रूलाती है |
ये तो शिष्टाचार है , और दुनियादारी है ,
वर्ना पुत्री घर पिता के , किसपे भारी है ?
जब भी घर से जाए , कुछ आँखें बरसती हैं |
पुत्री के बिन पापा की , आँखें तरसती हैं |
फ़र्क बस इतना कि , वो रस्में नहीं होतीं ,
सात फेरों वाली फिर , कस्में नहीं होतीं |
वर्ना ब्याह के बेटी , जब-जब घर पे आती है |
माता-पिता की आँखों मे , फिर खुशियाँ लाती है |
हर बार होए पुत्री की बस एक ही बार , विदाई नहीं होती |
माँ-बाप के होते वो कभी , पराई नहीं होती |
हर बार वही ममता , वही तो भाव आता है ,
पुत्री का अपने घर से , कैसा गहरा नाता है ?
हँसती है खिलखिला के , जब खुशियाँ महकती हैं |
यों लगे बगिया में ज्यों , चिड़ियाँ चहकती हैं |
परियों सी लाडली वो , पापा की दुलारी है |
उसकी हँसी में बस गई , कायानात सारी है |
कैसे पराई एक ही , दिन में हो जाती है ?
बस यही इक बात , मन ही मन रूलाती है |
ये तो शिष्टाचार है , और दुनियादारी है ,
वर्ना पुत्री घर पिता के , किसपे भारी है ?
जब भी घर से जाए , कुछ आँखें बरसती हैं |
पुत्री के बिन पापा की , आँखें तरसती हैं |
फ़र्क बस इतना कि , वो रस्में नहीं होतीं ,
सात फेरों वाली फिर , कस्में नहीं होतीं |
वर्ना ब्याह के बेटी , जब-जब घर पे आती है |
माता-पिता की आँखों मे , फिर खुशियाँ लाती है |
हर बार होए विदाई , जब बेटी घर पे आती है |
 , जब बेटी घर पे आती है |

पुत्री कभी पराई न होना ,

पुत्री कभी पराई न होना ,
दुनिया का दस्तूर है ,
हम भी बहुत मजबूर हैं ,
देनी तुम्हें विदाई है ,
वही शुभ घड़ी आई है ,
नव-जीवन की उषा में तुम
हमें देख मत रोना ,
पुत्री कभी ...........
तेरे अश्रू छलक गए तो ,
हम भी रोक न पाएँगे |
अपनी प्यारी बिटिया को हम
नहीं विदा कर पाएँगे |
बिन तेरे सूना आँगन ,
होगा खाली हर कोना
पुत्री कभी................
नए घर में जाओगी तुम ,
नव -संसार बसाने को ,
 नई होगी ज़िम्मेदारी ,
दुनिया की रीत निभाने को ,
 पुत्री से पत्नी का सफ़र
नहीं होगा खेल-खिलोना
पुत्री कभी ................
याद हमें वो पल आएँ ,
तू जब गोदी में आई थी ,
नन्हे-नन्हे हाथों में भर ,
ढेरों खुशियाँ लाई थी |
तेरी किलाकारी सुन सुन
न रात-रात भर सोना |
पुत्री कभी ..............
नन्हे-नन्हे कदमों से तू
पूरे घर में चलती थी ,
पायल की छनकार  मे तू
जब गिरती और संभलती थी
माँ की गोदि में आकर ,
मीठी निद्रा में सोना |
पुत्री कभी ..................
छोटे-छोटे खेल-खिलौने
छोटी थी गुड़िया रानी ,
कभी सजाती स्वयम् हाथ से
घर-गृहस्थी की बन रानी
आज वही सच में दिन आया
पूरा स्वपन सलोना ,
पुत्री कभी .........
खुशी-खुशी जाओ घर अपने
पूरे हों तेरे सब सपने ,
अपने सपनों की दुनिया को
सच में अभी संजोना
द्वार खुले मेरे दिल के ,
तुम उससे विदा न होना
पुत्री कभी ..............

17 जुल॰ 2020

क्या कोरोना सच में है वायरस ?

कोरोना सच में है वायरस
या ये कोई घोटाला है |
कि मुँह खोले खड़े विध्वंस
के मुँह का निवाला है |
कि लगती चाल है कोई ,
 कहीं पे कुछ तो काला है |
कि दुनिया बँध के रह जाए,
कहीं तो इसका ताला है |
कि दुनिया चाँद पे पहुँची ,
न क्यों वायरस संभाला है ?
कि मन में ये बैठा के डर ,
कि अब तू मरने वाला है ,
कि नींदें रात की छीनी ,
औ छीना दिन उजाला है |
कि भय ऐसा  बैठाया है ,
कि ज़िंदा मार डाला है |
अरे फट जाएगी इक दिन ,
जो मुख में भरी ज्वाला है |
चिंगारी एक चमकी है तो ,
लपटें भी जलाएगी |
की अंतर्मन की गर्मी से ,
कोरोना को रुलाएगी |
                   सीमा सचदेव

10 मई 2020

माँ - kavitaa

मैंने परी नहीं देखी , परन्तु माँ को देखा है ।
कोई कल्पना नहीं , ये मेरी भाग्य रेखा है ।
क्या कोई परी होगी , जो मेरी माँ से सुन्दर हो ?
बिलकुल नहीं , माँ तुम्हीं ममता का समंदर हो ।
तुमसे बढ़कर न हुआ , कोई भी न होगा ,
मुझमें समाई माँ , तुम मेरे मन के अंदर हो ।


मातृ दिवस की विश्व भर की सभी माताओं को ढेरों शुभकामनाएं  ।

सीमा  सचदेव

9 मई 2020

माँ शारदे प्रश्नावली - २

माँ शारदे प्रश्नावली - २



कल रात मेरे पास आ गयी माँ शारदे ,
कहने लगी कुछ प्रश्नों के मुझको जवाब दे ।
मैंने कहा माँ तुम तो स्वयं ज्ञान की दाता , 
है कौन सा सवाल , जो तुमको भी न आता ।
मैं अदना सी अनजान सी , कुछ भी तो न जानूँ ,
फिर भी हैं क्या सवाल , एक बार तो सुनूँ ।


कहने लगी ये शान्ति , चहुँ ओर क्यों छाई ?
जिस तरफ भी देखो , सारी जनता घबराई ।
क्यों डर रहा है आदमी , अपनों के मिलने से ?
क्यों नहीं उल्लास , नव फूलों के खिलने से ?
देखती हूँ , पर्वों में उमंग नहीं है ,
 हर कोई अकेला , कोई संग नहीं है ।
सड़कें हैं वीरान , क्यों  दिखती न  भीड़ है ?
यूँ लगे बतिया रहा , चिड़िया का नीड है ।
फूल तो खिले हैं , हरियाली भी खूब है ,
लहर लहर लहरा रही , लम्बी सी दूब है ।
कुदरत की सुंदरता का , भी अनोखा रंग है ।
फिर बदला -बदला क्यों , अभी जीने का ढंग है ?
क्यों मुँह छुपाए घूमता , हर जन मुझे दिखा ?
क्या दूर से बतिया रही , हिमगिरि की वो शिखा ?
पक्षी भी विचरण कर रहे , आज़ाद गगन में ,
है नई खुशबू औ , नया रंग चमन में ।
न धुल  न धुआँ है , आज मस्त पवन है ,
पर पड़ा वीरान क्यों , देवों का भवन है ?
मंदिर हुए क्यों बंद , न मस्जिद में अज़ान है ?
न देव न देहरी , चिढ़ाता कबरिस्तान है ।
न काम पर जाने की , लगी कोई होड़ है ,
जल्दी से निकल जाने की , न कोई दौड़ है ।
हैरान हूँ मैं , आदमी आराम कर रहा  ,
घर में दुबका बैठा , कैसा काम कर रहा ?
बंद पड़ा  विद्यालय , न बच्चों  का शोर  है ,
पसरा क्यों सन्नाटा , बोलो चारों ओर है ?

कहते हुए ये माँ की वाणी , भी भर्रा गयी  ,
नम हुई आँखें औ अश्रुधार आ गयी  ,
छोड़ वीणा तार , माँ ने बाहें खोल दी ,
यूँ लगा हर जन के , मन की बातें बोल दी ।

मैं क्या कहुँ , कैसे कहुँ , कुछ समझ पाई ना  ,
दिल भरा पर बात कोई , जुबां पे आई ना ।
बहने लगे थे आँसु , कंठ अवरुद्ध हो गया ,
मुँह से कुछ न निकला , पर मन शुद्ध हो गया ।

आँखों ही आँखों में , समझ ली , मेरे  मन की बात ,
यूँ बिलखता देख , माँ ने पकड़ा मेरा हाथ ।
ऐसा हुआ अहसास , मेरी आँख खुल गयी  ,
माँ के स्पर्श से , मन की सारी , पीड़ा धूल गयी ।

कर जोरि करूँ ये प्रार्थना , माँ तू  कर  उपकार  दे ,
दे दे हमें तू शक्ति , तू सब कुछ संवार दे ।
 महामारी से दुनिया को , तुम मुक्त कराओ माँ ,
मानवता के हेतु , तुम जल्दी से आओ माँ  ।
आ के अपनी किरपा का , हमको उपहार दे ,
कल रात मेरे पास , आई थी माँ शारदे ।

8 मई 2020

Irada - poem


20 मार्च 2020

कोरोना और रक्तबीज


कोरोना .................
तुमने  पाँव पसारे ,
बिना विचारे |
न जाने कौन सा
अदृश्य पाप हो ?
पूरी धरा पर फैल गया
या कोई श्राप हो |
जो भी हो अब तेरा
कल्याण निश्चय हो जाएगा |
भारत की भू पे आके अब ,
विनाश तेरा हो जाएगा |
आया था एक बार पहले भी
एक रक्तबीज तेरी तरह |
फैल गया था हर जगह ,
वो भी तेरी ही तरह |
अपनी रक्त की बूँदों से
शक्ति बढ़ाता जाता था |
जितना भी मारा उसे ,
वह और बढ़ता जाता था |
किंतु ...........
माता दुर्गा ने ,
शक्ति अपनी दिखलाई थी ,
रक्तबीज हेतु उसने
जीभ अपनी फैलाई थी |
पी लिया था रक्त और
फिर , रक्तबीज का वध किया |
एक राक्षस हेतु माँ ने ,
चन्डी रूप धारण किया |

देखो क्या सौभाग्य है ?
माँ दुर्गा फिर से आ रही |
कोरोना जैसे दैत्य पर वो ,
काल बनकर छा रही |

जब जब धर्म की हानि से ,
कोई मानवता आहत हुई |
तब तब किसी रूप में
भगवान की आहट हुई |

 कण कण मे भारत भूमि के
उस शक्ति का निवास है |
यकीन मानो कोरोना अब
तेरा निश्चित विनाश है |

कोरोना का प्रसार मुझे श्री गुरु गोबिंद सिंग जी की उस रचना " चन्डी दी वार " की याद दिलाता है , जिसमें रक्तबीज का रक्त जहाँ पर गिरता है , वहाँ पर और रक्तबीज उत्पन्न हो जाते हैं | उस रक्तबीज को ख़तम करने हेतु देवी दुर्गा ने " चन्डी "का रूप धारण कर उसका लहू अपनी जीभ से चाटकर उसका ख़ात्मा किया |