उधेड़ -बुन
त्योहारों का मौसम अर्थात सेल- फेस्टिवल सेल के नाम पर जितना भारतीय जनता लुटती है या फिर यूं कहें कि
उन्हें लूटा जाता है, ऐसा शायद ही कहीं और होता होगा |
एक जादू सा प्रभाव डालता है- सेल शब्द | कानों में गूंजते ही कुछ दिमाग में हलचल होने लगती है और ना
चाहते हुए भी कदम बढ़ ही जाते हैं- सेल दर्शनार्थ |
मुझे याद है जब छोटे थे तो बड़े बहन- भाई के कपड़ों को ललचाई नजरों से देखते थे , कि अगले साल तक
यह कपड़ा हमारा होगा | कपड़ा अच्छे से जब तक किस नहीं जाता था- किसी ना किसी के तन पर विराजमान
रहता ही था | मतलब एक बार कोई नया कपड़ा ले लिया तो उसका अच्छा प्रयोग करना हमारे घर वाले बखूबी जानते थे |
और एक मजेदार बात- हमारे कपड़ों की सिलाई भी घर पर ही की जाती थी | फिटिंग क्या होती है- इतनी समझ कहां थी-
बस रंग/ प्रिंट देख कर ही मोहित हो जाते थे |
हां, तो मैं बात कर रही थी सिलाई की | सिलाई करते समय अंतर को इतना कपड़ा छोड़ा जाता था कि- कहीं कपड़ा खुला
करने की आवश्यकता पड़ी तो आसानी से किया जा सके और कम से कम दो- तीन साल तक तो आसानी से पहना जा
सके मतलब कपड़ों को खुला करने और सालों तक पहनने की गुंजाइश रखी जाती थी और सच में पहना भी जाता था |
तब कोई वार्डरोब तो होते नहीं थे, गिनती के कपड़े होते थे और वह भी अगर आप घर में छोटे हो तो पुराने ही |
तब बड़ों के उतरे कपड़े ही हमारा ब्रांड होता था | वह भी क्या दिन थे | कपड़ों की उधेड़बुन में कब बड़े हो गए और
जीवन कठिन पथ पर कब आगे बढ़ गए, पता ही नहीं चला | जिम्मेदारियों के बोझ तले ऐसा दवे के उन बचपन की यादों
को सहेजने का समय कहां मिला | ना ही हम उन कपड़ों को सहेज पाए, पाएं जिन्हें पहनने के लिए निगाहें भाई-बहन
पर ही टिकी रहती थी | अनजाने में ही सही लेकिन हम उनके और अपने बड़े होने की कामना करते थे |
सब छूट गया | वह घर की पुरानी सिलाई मशीन एक कोने में सिसकती है | कभी कभार उसके ऊपर जमी धूल को साफ
करके उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर देते हैं | आज उन्हीं कपड़ों की जगह महंगी ब्रांडेड कपड़ों ने ले ली है |
समय का अभाव हमें रेडीमेड की तरफ खींच ले गया | सब कुछ सिला सिलाया और ब्रांड न्यू | एक नया एहसास,
आत्मविश्वास और बहुत सारे विकल्प | मशीन को तो जैसे भूल ही गए | मेहनत जो कम हो गई थी, हां जेब थोड़ी ज्यादा
ढीली करनी पड़ी |
सोच फिर भी वही थी, बस मशीन ही छुट्टी थी , घर की परंपरा नहीं | छोटे बहन भाई आज भी छोटे ही थे | उनके हिस्से
आप भी पुराने ही कपड़े आ रहे थे, बस वह मां के सिले हुए ना थे | मशीन का प्रयोग अब कभी कभार रेडीमेड कपड़ों
को खुला जा तंग करने के लिए ही होता था | मां का काम थोड़ा आसान हो गया था | रेडिमेड खरीदते समय एक चीज का विशेष ध्यान रखा जाता था कि- अंदर अरज कितना है ताकि कल को खुला करने
में परेशानी ना हो समय के साथ साथ सब बदल गया | रेडीमेड कपड़ों की जगह ब्रांडेड रेडीमेड कपड़ों ने ले ली |
बस जाओ, पसंद करो और खरीद कर ले आओ | हम होशियार थे | महंगे कपड़े अवश्य खरीदें लेकिन सोच रही थी
कि उसे खुला कर दो चार साल तक आराम से पहनने की गुंजाइश हो |
हम हम साथ थे तो ब्रांड वाले हमसे भी ज्यादा होशियार निकले | हम अगर ऐसे ही एक कपड़े को सालों तक पहनेंगे
तो बिक्री क्या खाक होगी | उन्होंने हमसे हमारी सबसे पसंदीदा चीज (अंदर का अरज )हमसे छीन ली और कपड़े को
खुला करने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी |
हम भी कहां कम थे | अपना होशियार दिमाग लगाया और परंपरा का निर्वाह करते हुए कपड़ा एक- दो साइज बड़ा
ही खरीदा और पुरानी तकनीक अपनाते हुए उसे थोड़ा तंग किया ,पहन लिया और फिर खुदा -ना- रास्ता आप की
फिटिंग गड़बड़ाई तो अपनी लगाई हुई सिलाई खोल दो |
हमारी यह होशियारी भी ज्यादा देर तक काम ना आई | अब ब्रैंडिड महंगे वाले कपड़ों के डिजाइन ऐसे बनाने लगे कि
आप उसे खुला या तंग कर ही नहीं सकते | बस आप अपना साइज का खरीदो और अपने आपको फिट रखो| थोड़ी सी
भी शारीरिक व्यवस्था चरमराई तो आपका ब्रांडेड कपड़ा गया भाड़ में- वह किसी काम का नहीं | मजबूरन आप उसे
किसी न किसी को दान में देने पर मजबूर हो जाते हैं और आपके प्रिय कपड़े आपके हाथों से निकल जाते हैं |
उन्हें सहेजने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहती |
आज जब मां ने कहा कि कपड़े खरीदते हुए आज का ध्यान रखा कर, तो मुझे ना जाने क्यों वह छोड़ चुके सारे
रिश्ते नाते याद आ गए जो ब्रांडेड कपड़ों की तरह हर दिन नया रूप ले रहे हैं |
कपड़ों की उधेड़ -बुन में हमारे रिश्ते कहीं उलझ कर रह गए हैं, जिन्हें सहेजने की गुंजाइश भी बाकी नहीं रहती है |