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22 जन॰ 2022

उधेड़ -बुन

 उधेड़ -बुन

त्योहारों का मौसम  अर्थात सेल- फेस्टिवल सेल के नाम पर जितना भारतीय जनता लुटती है या फिर यूं कहें कि

उन्हें लूटा जाता है, ऐसा शायद ही कहीं और होता होगा |

 एक जादू सा प्रभाव  डालता है- सेल शब्द | कानों में गूंजते ही कुछ दिमाग में हलचल होने लगती है और ना

चाहते हुए भी कदम बढ़ ही जाते हैं-  सेल दर्शनार्थ |

 मुझे याद है जब छोटे थे तो बड़े  बहन- भाई के कपड़ों को  ललचाई नजरों से देखते थे , कि अगले साल तक

यह कपड़ा हमारा होगा | कपड़ा अच्छे से जब तक किस नहीं जाता था- किसी ना किसी के तन पर विराजमान

रहता ही था | मतलब एक बार कोई नया कपड़ा ले लिया तो उसका अच्छा प्रयोग करना हमारे घर वाले बखूबी जानते थे |

 और एक मजेदार बात- हमारे कपड़ों की सिलाई भी घर पर ही की जाती थी |  फिटिंग क्या होती है- इतनी समझ कहां थी-

बस रंग/ प्रिंट  देख कर ही मोहित हो जाते थे |

 हां, तो मैं बात कर रही थी सिलाई की | सिलाई करते समय अंतर को इतना कपड़ा छोड़ा जाता था कि- कहीं कपड़ा खुला

करने की आवश्यकता पड़ी तो आसानी से किया जा सके और कम से कम  दो-  तीन  साल तक तो आसानी से पहना जा

सके मतलब कपड़ों को खुला करने और सालों तक पहनने की गुंजाइश रखी जाती थी और सच में    पहना भी जाता था |

तब कोई वार्डरोब तो होते नहीं  थे, गिनती के कपड़े होते थे  और वह भी अगर आप घर में छोटे हो तो  पुराने ही |

 तब बड़ों के उतरे कपड़े ही हमारा ब्रांड होता था | वह भी क्या दिन थे | कपड़ों की उधेड़बुन में कब बड़े हो गए और

जीवन कठिन पथ पर कब आगे बढ़ गए, पता ही नहीं चला | जिम्मेदारियों के बोझ तले ऐसा दवे के उन बचपन की यादों

को सहेजने का समय कहां मिला | ना ही हम उन कपड़ों को सहेज पाए, पाएं  जिन्हें पहनने के लिए निगाहें भाई-बहन

पर ही टिकी रहती थी | अनजाने में ही सही लेकिन हम उनके और अपने बड़े होने की कामना करते थे |

 सब छूट गया | वह घर की पुरानी सिलाई मशीन एक कोने में सिसकती है | कभी कभार उसके ऊपर जमी धूल को साफ

करके उसके प्रति कृतज्ञता प्रकट कर देते हैं | आज उन्हीं कपड़ों की  जगह महंगी ब्रांडेड कपड़ों ने ले ली है |

 समय  का अभाव हमें रेडीमेड की तरफ खींच ले गया | सब कुछ   सिला सिलाया और ब्रांड न्यू | एक नया  एहसास,

आत्मविश्वास और बहुत सारे विकल्प | मशीन को तो जैसे भूल ही गए | मेहनत जो कम हो गई थी, हां  जेब थोड़ी ज्यादा

ढीली करनी पड़ी |

 सोच फिर भी वही थी, बस मशीन ही छुट्टी थी , घर  की परंपरा नहीं | छोटे बहन भाई आज भी छोटे ही थे | उनके हिस्से

आप भी पुराने ही कपड़े आ रहे थे, बस वह मां  के सिले हुए  ना थे |  मशीन का प्रयोग अब कभी कभार रेडीमेड कपड़ों

को खुला जा तंग करने के लिए ही होता था | मां का काम थोड़ा आसान हो गया था | रेडिमेड खरीदते समय एक चीज का विशेष ध्यान रखा जाता था  कि- अंदर  अरज  कितना है ताकि कल को खुला करने

में परेशानी ना हो  समय के साथ साथ सब बदल गया | रेडीमेड कपड़ों की जगह ब्रांडेड रेडीमेड कपड़ों ने ले ली |

बस जाओ,  पसंद करो और खरीद कर ले आओ |  हम होशियार थे | महंगे कपड़े अवश्य खरीदें लेकिन सोच रही थी

कि उसे खुला कर दो चार साल तक आराम से पहनने की गुंजाइश हो |

 हम हम साथ थे तो   ब्रांड वाले हमसे भी ज्यादा होशियार निकले | हम अगर ऐसे ही एक कपड़े को सालों तक पहनेंगे

तो बिक्री क्या खाक होगी | उन्होंने हमसे  हमारी सबसे पसंदीदा चीज (अंदर का अरज )हमसे छीन ली और कपड़े को

खुला करने की गुंजाइश ही नहीं छोड़ी |

 हम भी कहां कम थे | अपना होशियार  दिमाग लगाया और परंपरा का निर्वाह करते हुए कपड़ा  एक- दो साइज बड़ा

ही खरीदा  और पुरानी तकनीक अपनाते हुए उसे थोड़ा तंग किया ,पहन लिया  और फिर  खुदा -ना- रास्ता आप की

फिटिंग गड़बड़ाई तो अपनी लगाई हुई सिलाई खोल दो |

हमारी यह होशियारी भी ज्यादा देर तक काम ना आई | अब ब्रैंडिड महंगे वाले कपड़ों के डिजाइन ऐसे बनाने लगे कि

आप उसे खुला या तंग कर ही नहीं सकते | बस आप अपना साइज का खरीदो और अपने आपको फिट रखो| थोड़ी सी

भी शारीरिक व्यवस्था चरमराई तो आपका ब्रांडेड कपड़ा गया भाड़ में- वह किसी काम का नहीं | मजबूरन आप उसे

किसी न किसी को दान में देने पर मजबूर हो जाते हैं और आपके प्रिय कपड़े आपके हाथों से निकल जाते हैं |

उन्हें सहेजने की कोई गुंजाइश बाकी नहीं रहती |


 आज जब मां ने कहा कि कपड़े खरीदते हुए  आज का ध्यान रखा कर,  तो मुझे ना जाने क्यों वह छोड़ चुके सारे

रिश्ते नाते याद आ गए जो ब्रांडेड कपड़ों की तरह हर दिन नया रूप ले रहे हैं |

 कपड़ों की उधेड़ -बुन में हमारे रिश्ते कहीं उलझ कर रह गए हैं, जिन्हें सहेजने की गुंजाइश भी बाकी नहीं रहती है |

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