ये तो होना ही था साहब,
खुद का ही जाल था,
बस यही तो कमाल था,
जन-जन का ध्यान भटकाना था,
किसी तरह समय बिताना था |
करते भी क्या ?
विकास के नाम पर ,
बस, ठेंगा था दिखाने को |
और दिख गया किसान,
आंदोलन पर बैठाने को |
ऐसा चक्रव्यूह बुना,
कर दिया सब कुछ अनसुना ,
अब मगरमच्छ केआँसू बहाएँगे |
न जाने कितने जुमले सुनाएँगे,
जनता को हसाएँगे,
वोट बैंक बढ़ाएँगे |
अगले पाँच साल हेतु,
सपने दिखाएँगे |
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अब देखना कोरोना भी,
ख़त्म हो जाएगा |
अगले चुनाव तक सब,
सामान्य हो जाएगा |
अब बस भाषण,
मीडिया मे छाएगा |
विकास बेचारा ,
किसी कोने मे छुपकर,
आँसू बहाएगा |
जै हिंद
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