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4 अप्रैल 2018

पापा तुम क्यों चले गए ?




पापा ………………………………..
तुम्हारी साँसों में धडकन सी थी मैं ,
जीवन की गहराई में बचपन सी थी मैं ।
तुम्हारे हर शब्द का अर्थ मैं ,
तुम्हारे बिना व्यर्थ मैं ,
तुम्हारी हर आशा , मुस्कान मैं
तुम्हारे रहते
हर गम से अनजान मैं ।
तुम्हीं मेरी दुनियादारी थे ,
निराशा में आशा की चिंगारी थे ।
तुम्हारा विश्वास  
हर गम भुला देता था
घनघोर तम भी
रोशनी दिखा देता था ।
जाने तुम कैसे मुस्काते थे ?
न जाने कितना दर्द छुपाते थे ।
मैं तुम्हारी हर पीडा से अनजान थी ,
तुम्हारे आगे मैं कितनी नादान थी ।
जाने फ़िर भी तुम क्यों इतराते थे ?
कैसे मुझे अपनी शेरनी बताते थे ?
तुम्हारे बिना जिंदगी बेकार लगती है ,
सच कहुँ , तो सांसे भी भार लगती हैं ।
मेरे लिए तो धरती पर ,
बस तुम्हीं एक इनसान थे ,
अगर कोई भगवान है ,
तो तुम उसके भी भगवान थे ।
कैसे कहुँ , तुम क्या थे ?
हर शब्द छोटा पड जाता है ।  
तुम्हारी आँखों का भोलापन ,
बहुत याद आता है ।
तुम्हारी बचपन सी मासूमियत ,
हर पल तडपाती है ,
पापा ,
तुम्हारी बहुत याद आती है ।
तुम कभी ख्यालों से जाते नहीं ,
तुम क्यों लौटकर आते नहीं ?
काश ! मैं सच में शेरनी बन जाती ,
और तुम्हें जाने से रोक पाती ।
तरस गई हूँ , तुम्हारी आवाज़ को ,
मुझे पुकारने वाले , उस अंदाज़ को ।
तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता ,

भीड भरी दुनिया में ,
कोई सच्चा नहीं लगता ।
तुम्हारे जाने से लगता है ,
दुनिया से सारे भले गए
पापा ,
तुम हमसे दूर क्यों चले गए  ?
पापा , तुम क्यों चले गए ?