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1 अप्रैल 2009

जीवन एक कैनवस

दिन -रात,सुख-दुख ,खुशी -गम

निरन्तर
भरते रहते अपने रन्ग

बनती -बिगडती
उभरती-मिटती तस्वीरो मे

समय के साथ
परिपक्व होती लकीरो मे

स्याह बालो मे
गहराई आँखो मे

अनुभव से
परिपूर्ण विचारो मे

बदलते
वक़्त के साथ
कभी निखरते

जिसमे
स्माए हो
रन्ग बिरन्गे फूल

कभी
धुँधला जाते

जिस पर
जमी हो हालात की धूल

यही
उभरते -मिटते
चित्रो का स्वरूप

देता है सन्देश
कि
जीवन है एक कैनवस

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