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24 मार्च 2010

बिखर गया जो तार-तार अहसास कहां से लाऊं

बिखर गया जो तार-तार
अहसास कहां से लाऊं

तोड दिया खुद तुमने जो
विश्वास कहां से लाऊं
न दर्द रहा दिल में कोई
न रही कोई इसमें धडकन
पाहन से सीने में तो अब
न विचलित होता है ये मन
न आह रही इसमें कोई
तो प्यास कहां से लाऊं
तुम्हीं बताओ पहला वो
अहसास कहां से लाऊं

नैनों से नीर नहीं बहता
न भाती इनको सुन्दरता
न भाव दिखें गहरे इनको
न रही है इनमें चंचलता
न इठलाते इतराते ये
तो पास कहां से आऊं
तुम्हीं बताओ पहला वो
अहसास कहां से लाऊं

न भाव रहा न ही भंगिमा
न रही वो पहले सी गरिमा
न दर्द न अनुभव है कोमल
न आह किसी से पिघले दिल
अर्थहीन जग-जीवन तो
फ़िर आस कहां से लाऊं ( आस - उम्मीद )
तुम्हीं बताओ पहला वो
अहसास कहां से लाऊं
तोड दिया खुद तुमनें जो
विश्वास कहां से लाऊं
विश्वास कहां से लाऊं

18 मार्च 2010

माला की माया- हास्य कविता


माला की माया ने
ऐसा बवंडर मचाया
हर सांसद क्या
आम जन भी चिल्लाया
चौंधिया गईं आंखें
कैमरों की भी
देखते ही माला की चमक
पास में होते तो
शायद पकडते लपक
फ़टी की फ़टी आंखें और
मुंह में पानी भर आया
माला की माया ने
ऐसा रंग दिखाया
कि हर कोई ललचाया
दूर ही के दर्शन से
मैं बेहोश हो गई
ऐसी ही माला के
सपनों में खो गई
मैनें देखा.........
मुझे पहनाई एक माला
अंधेरे बंद कमरे में
माया का उजाला
नोटों में खनक होती है
सुना था
पर इतनी चमक को
पहले न देखा था
सबकी जुबां पर
बस मेरा ही नाम
पूछता हर जन
माला का दाम
मैनें सोचा न था
एक माला
इतना बडा
काम कर जाएगी
कुछ ही पलों में
मेरा नाम कर जाएगी
फ़िर अचानक उठे शोर से
मैं घबराई
माला छुपाई
कहां जाऊं ?समझ न पाई
इतने में एक नेता जी ने
घंटी बजाई
झट से माला तोडने का
सलाह सुनाई
एक नकली नोटों की माला
मेरे घर भिजवाई
बात मुझे अभी भी
समझ न आई
असली माला को
जमीं निगल गई
या आसमान खा गया
मेरी आंखों में
अंधेरा छा गया
मैनें पूछा नेता जी
यह क्या बदमाशी है ?
माला को छुपा देने में
कौन सी शाबाशी है ?
असली माला देखे बिन
मुझे नींद नहीं आती है
यह नकली माला
मुझे नहीं भाती है
जब छुपानी ही थी
तो पहनाई क्यों ?
जब तोडनी ही थी
तो बनवाई क्यों ?
इतने कारीगरों नें
महान कार्य जो किया है
उनको अच्छा-खासा
मेहनताना भी दिया है
फ़िर तुमनें यूं क्यों
माला को गुमाया है ?
मीठी निद्रा में सोते-सोते
मुझे क्यों जगाया है
मुझपर तो माया का नशा है
नोटों की सेज़ पर सोने का
अपना ही मजा है ।
नेता झल्लाया
फ़िर तीखी वाणी में समझाया
तुम्हें हीरों की माला पहनाएंगे
उन चमचमाते हीरों को
फ़ूलों में छुपाएंगे
किसी की बुरी नज़र
नहीं लग पाएगी
बहन जी
हमारी इज्जत बच जाएगी
फ़ूलों से खाक दिखाऊंगी
अपनी माया के जलवे
जो दिखाने में
घिस जाते हैं तलवे
अरे ! मैं इज्जत से
क्या खाक कमाऊंगी ?
माला न मिली तो
मैं जीते जी मर जाऊंगी
जलदी से दूसरी माला बनवाओ
और मेरे गले में पहनाओ
उसकी कीमत और
अपनी औकात बता दो
जलदी से चमचमाती
माला बना दो
नेता जी ने माला मंगवाई
फ़िर से मेरे गले में पहनाई
मैनें देखा हाथ से छूकर
बिखर गए मोती
माला के गिरकर
हडबडा कर आंखें खोली
और अपनी ही
किस्मत पर रो ली
कल ही तो खरीदकर लाई थी
अभी तक किसी
सहेली को भी न दिखाई थी
और कर दी मैनें ऐसी नादानी
पचास रुपए पर फ़ेर दिया पानी
माला के मोती बिखर गए
मेरे सपने टूट गए
बिखरे मोतियों को
कचरा दान में फ़ैंकवाया
फ़िर लाख प्रयास किए
माला का सपना न आया

11 मार्च 2010

मैं और तन्हाई - भाग १

इक रात थी काली अंधियारी
जीने की चाह से मैं हारी
न खुला था आगे कोई पथ
लगा, थम गया है जीवन-रथ
न पास में था मेरे कोई
मैं बिलख-बिलख कर बस रोई
इक साथ में थे आंसु और गम
नैना रहते थे हर दम नम
फ़िर एक घडी ऐसी आई
आंखें भी मेरी पथराई
मैं गम थी या गम ही मैं था
कोई भेद न था , कोई भेद न था
क्रमश:

8 मार्च 2010

हर दिन नारी दिवस बना लो

.नारी तुम प्रेम हो आस्था हो विश्वास हो ,
टूटी हुई उम्मीदों की एकमात्र आस हो
हर जन का तुम्हीं तो आधार हो
नफ़रत की दुनिया में मात्र तुम्हीं प्यार हो
उठो अपने अस्तित्त्व को संभालो
केवल एक दिन ही नहीं ,
हर दिन नारी दिवस बना लो

२. नारी तुम जननी हो
सष्टि में सर्वोत्तम
फ़िर पसरा है क्यों
तुम्हारे ही जीवन में तम
दुनिया को रोशन करती हो
क्यों स्वयं तिल-तिल मरती हो
अपने मन में भी एक
आशा की किरण बसा लो
केवल एक दिन ही नहीं ,
हर दिन नारी दिवस बना लो
. इतिहास के नाम पर स्वयं को
उपहास क्यों बनाती हो ?
क्यों किसी के अहं के आगे
स्व को भूल जाती हो
तुम लाचार नहीं हो
सजाकर दे दो खुद को
वो उपहार भी नहीं हो
क्यों खो रही हो अपनी गरिमा
केवल पन्नों में खो जाए
तुम्हारी अपार महिमा
उससे पहले ही
अपना नाम कमा लो
केवल एक दिन ही नहीं ,
हर दिन नारी दिवस बना लो

४. याद करो वो सीता स्वयंवर
नारी इच्छा से चुनती थी वर
आज क्यों बन रही हो बेचारी
ऐसी तो कभी न थी
भारत की नारी
दोहरा रही हो तुम
कौन सा इतिहास
क्यों भूल चुकी हो अपनी ही
महानता का अहसास
तुम गुमनाम नहीं हो
जो चुकाया जा सके
वो दाम नहीं हो
खुद को इतना न गिराओ
कि तमाशा ही बन जाओ
भूखी निगाहों के तीर न सहो
बल्कि उन्हीं को निशाना बना लो
केवल एक दिन ही नहीं ,
हर दिन नारी दिवस बना लो


नारी दिवस की हार्दिक बधाई.....सीमा सचदेव