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11 मार्च 2010

मैं और तन्हाई - भाग १

इक रात थी काली अंधियारी
जीने की चाह से मैं हारी
न खुला था आगे कोई पथ
लगा, थम गया है जीवन-रथ
न पास में था मेरे कोई
मैं बिलख-बिलख कर बस रोई
इक साथ में थे आंसु और गम
नैना रहते थे हर दम नम
फ़िर एक घडी ऐसी आई
आंखें भी मेरी पथराई
मैं गम थी या गम ही मैं था
कोई भेद न था , कोई भेद न था
क्रमश:

1 टिप्पणी:

Taarkeshwar Giri ने कहा…

very nice post

नैना रहते थे हर दम नम
फ़िर एक घडी ऐसी आई
आंखें भी मेरी पथराई