इक रात थी काली अंधियारी
जीने की चाह से मैं हारी
न खुला था आगे कोई पथ
लगा, थम गया है जीवन-रथ
न पास में था मेरे कोई
मैं बिलख-बिलख कर बस रोई
इक साथ में थे आंसु और गम
नैना रहते थे हर दम नम
फ़िर एक घडी ऐसी आई
आंखें भी मेरी पथराई
मैं गम थी या गम ही मैं था
कोई भेद न था , कोई भेद न था
क्रमश:
मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
1 टिप्पणी:
very nice post
नैना रहते थे हर दम नम
फ़िर एक घडी ऐसी आई
आंखें भी मेरी पथराई
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