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21 सित॰ 2008

माँ की आँखे

माँ की आँखे
आज रोई थी उस माँ की आँखे
जो पी जाती थी हर जहर
देख कर अपने सुत की सूरत
जिनको गरूर था अपने
वात्सल्यपूर्ण अश्रुओँ पर
एक उम्मीद के सहारे
छुपा लेती थी जो
अपने सीने मे
उठते हर उफान को
कर जाती थी न जाने
कितने ही तूफानो का सामना
लड जाती थी अपनी तकदीर से भी
देती थी पहरा जाग कर रातो को
मूक रहती ,जुबान तक न खोलती
कि कही जरा सी आहट
बाधा न बन जाए
लाडले के आराम मे
लेकिन खुश थी
कि उसके त्याग से
सो रहा है वो सुख की नीद
न जाने वो जगती आँखो मे
कितने ही सपने समेट लेती
मुस्करा देती मन ही मन
हालात और वक़्त के आगे बेबस माँ
बस सही समय के इन्तजार मे
समय आया
हालात बदले, वक़्त बदला
लेकिन माँ की आँखो ने
फिर भी निद्रा का
रसास्वादन नही किया
आज सोया है सुत सदा की नीद
और वही माँ
रोती है चिल्लाती है
आवाजे लगाती है
झिँझोड कर जगाती है
आज वह सुत से
बतियाना चाहती है
उसको हर दर्द बताना चाहती है
आज वह उसे सुलाना नही
जगाना चाहती है
पर वह मूक खामोश सोया है
और...........
माँ .......की सूनी आँखो मे सपना
......?
लाडले को जगाना ............

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