नारी-परीक्षा
मत लेना कोई परीक्षा अब
मेरे सब्र की
बहुत सह लिया
अब न सहेन्गे
हम अपने आप को
सीता न कहेन्गे
न ही तुम राम हो
जो तोड सको शिव-धनुष
या फिर डाल सको पत्थरो मे जान
नही बन्धना अब मुझे
किसी लक्षमण रेखा मे
यह रेखाएँ पार कर ली थी सीता ने
भले ही गुजरी वो
अग्नि परीक्षा की ज्वाला से
भले ही भटकी वो जन्गल-जन्गल
भले ही मिला सब का तिरस्कार
पर कर दिया उसने नारी को आगाह
कि तोड दो सब सीमाएँ
अब नही देना कोई परीक्षा
अपनी पावनता की
नही सहना कोई अत्याचार
बदल दो अब अपने विचार
नारी नही है बेचारी
न ही किस्मत की मारी
वह तो आधार है इस जगत का
वह तो शक्ति है नर की
आधुनिक नारी हूँ मै
नही शर्म की मारी हूँ मै
बना ली है अब मैने अपनी सीमाएँ
जिसकी रेखा पर
कदम रखने से
हो सकता है तुम्हारा भी अपहरण
या फिर मै भी दे सकती हूँ
तुम्हे देश-निकाला
कर सकती हूँ तुम्हारा बहिष्कार
या फिर तुम्हे भी देनी पड सकती है
कोई अग्नि परीक्षा
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मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
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