चौराहे पर खडा विचारे
बन्द मार्ग सारे के सारे
मुड जाता है उसी दिशा मे
जिधर से भी कोई उसे पुकारे
न कोई समझ न सोच रही है
बन गई दिनचर्या ही यही है
जिम्मेदारी सिर पर भारी
चलता है जैसे कोई लारी
दूध के कर्ज़ की सुने दुहाई
कभी जीवन सन्गिनी भरमाई
माँगे रखते है कभी बच्चे
बॉस के भी है नौकर सच्चे
हाँ मे हाँ मिलाता रहता
बस खुद को समझाता रहता
करता है उनसे समझौते
जो राहो के पाहन होते
क्या देखे क्या करे अनदेखा?
कौन से करमो का देना लेखा?
बचपन से ही यही सिखाया
जिस माँ-बाप ने तुमको जाया
उनका कर्ज़ न दे पाओगे
भले जीवन मे मिट जाओगे
पत्नी सँग लिए जब फेरे
कस्मे-वादो ने डाले डेरे
दफतर मे बैठा है बॉस
दिखाता रहता अपनी धौस
चाहकर भी न करे विरोध
अन्दर ही पी जाता क्रोध
समझे कोई न उसकी बात
न दिन देखे न वो रात
अपनी इच्छाओ के त्याग
नही है कोई जीवन अनुराग
पिसता है चक्की मे ऐसे
दो पाटो मे गेहुँ जैसे
सबकी इच्छा ही के कारण
कितने रूप करे हैं धारण
फिर भी खुश न माँ न बीवी
क्या करे यह बुद्धिजीवि ?
माँ तो अपना रौब दिखाए
और बीवी अधिकार जताए
एक अकेला किधर को जाए?
किसको छोडे किसको पाए ?
साँप के मुँह ज्यो छिपकली आई
यह् कैसी दुविधा है भाई
छोडे तो अन्धा हो जाए
खाए तो दुनिया से जाए
हर पल ही है पानी भरता
और अन्दर ही अन्दर डरता
पुरुष है नही वो रो सकता है
अपना दुख न धो सकता है
आँसु आँखो मे जो दिखेगा
तो समाज भी पीछे पडेगा
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पुरुष है पर नही है पुरुषत्व
अच्छा न आँसुओ से अपनत्व
बहा न सकता अश्रु अपने
न देखे कोई कोमल सपने
दूसरो की प्यास बुझाता रहता
खुद को ही भरमाता रहता
स्वयम तो रहता हरदम प्यासा
जीवन मे बस मिली निरासा
पाला बस झूठा विश्वास
नही बुझी कभी उसकी प्यास
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अंतराष्ट्रीय पुरुष दिवस की हार्दिक बधाई एवम शुभ-कामनाएं
4 टिप्पणियां:
सुंदर चित्रण, सटीक चित्रण।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
अरे वा ! पुरुषों का भी कोई दिवस होता है ? लेकिन कविता बहुत अच्छी है ।
बहुत सुन्दर , मुझे तो उम्मीद ही नहीं थी कि इन निक्कामो पर भी कोई कविता लिखेगा !
बहुत सुंदर कविता। इस प्रकार की अभ्व्यक्ति कठिन है। लेकिन मार्मिक है।
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