बातों से निकली बात बात बेगानी हो गयी
दबी थी जो मस्तक में , अब कहानी हो गयी
अनभव को जीकर छोड़ दो
हर गम से नाता तोड़ दो
बोला जो एक शब्द भी
तो नादानी हो गयी
तुम सहती हो बस सहती रहो
कुछ कहना हो खुद से कहती रहो
कह दी जो मन की बात
तो बदजुबानी हो गयी
न पार करो अपनी सीमा
मुश्किल हो जाएगा जीना
लांघा जो एक कदम तो
इज्जत पानी हो गयी
नारी का घूंघट उतरा
तो धमाल हो गयी
कह दी जो मन की बात
तो वो छिनाल हो गयी
--------------------------
--------------------------
जो कहना हो खुलकर बोलो
जब चाहे जहां भी जो खोलो
कह दी जो अपनी बात
तो सोच विशाल हो गयी
जब पुरुष नें कह दी बात
तो बात कमाल हो गयी ,
जब नारी उसी पे बोली
तो वो छिनाल हो गयी ..........
???????????????
मुहावरे ढूँढो :
-
मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
3 टिप्पणियां:
सीमा जी,बहुत कड़वा यथार्थ आपने अपनी इस कविता में लिखा है----पर ये साहित्य के मठाधीश लोग क्या इसे हजम कर पायेंगे?----वैसे कविता आपकी बहुत बढ़िया लगी।
bahut achhi kavita hai, purush ki yahi soch aurat ko majbut bana rahi hai, waqt badlega soch badlegi. thanx
छिनाल वाली दूसरी पोस्टों पर हम पहले भी कुछ कमेंट्स दे चुके हैं...
ऐसे घटिया बयान... सच में शर्म की बात है ...
हम तो कहते हैं की इसके खिलाफ लिखने कि बजाय...कहीं मिल जाएँ ये महोदय..
तो भिगो भिगो कर जूतियाँ मारनी चाहिए...
एक टिप्पणी भेजें