यह लेख मैने २०११ में एक छोटी
सी अंधश्रद्धा को देखकर लिखा था । आज फ़िर से वही दोहराने पर मजबूर हूँ
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भारत भूमि , वो पावन भूमि
जिसे देवी देवताओं और ऋषि मुनियों की धरा कहा जाता है , जहां
कदम कदम पर कोइ न कोइ तीर्थस्थल है और हर दिन कोई न कोई त्योहार है , जहां जन्म लेना
सौभाग्य नहीं बल्कि न जाने कितने जन्मों के उत्तम कर्मों का फल समझा जाता है |
जहां की मिट्टी की खुशबू हर किसी को अनायास ही मीठी मीठी सुगंध से
महका देती है , जहां मैं स्वयम को भाग्यशाली मानती हूँ और
ईश्वर से दुआ भी करती हूँ कि अगर पुनर्जन्म होता है तो मुझे भारत में ही जन्म देना
| कहा जाता है कि भारत भूमि पर जन्म लेने को देवी देवता भी
तरसते हैं | सोने की चिड़िया , ज्ञान का
भण्डार , पावन वेदों की धरती , जहां हर
धर्म को सम्मान दिया जाता है , जहां
सभ्यता और संस्कृति का ऐसा सुन्दर सुमेल है कि बस ……….ऐसा
कहीं और हो ही नहीं सकता और गर्व से कहूंगी कि हम भारतीय ही
हैं जो इसे निभा पाते हैं । न तो ऐसा अपनापन कहीं और दिखता है और निभा पाने की सामर्थ्य भी शायद ही किसी और में हो | जय हो भारत भूमि की कि – – ” कुछ बात है कि हस्ती
मिटती नहीं हमारी ” | हम भारतीय हैं – यह
सर उठाकर गर्व से कहते हैं |
----लेकिन दुःख हो रहा है यह कहते हुए कि वो भारतीय ही हैं जो अपने ही लोगों को गुमराह कर लूट रहे हैं | दुःख होता है मुझे जब देखती हूँ कि भोले-भाले लोगों की अंधी श्रद्धा का कुछ स्वार्थी तत्व कैसे नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं और इसका शिकार भोले-भाले ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे अच्छे सुशिक्षित लोग भी होते हैं | कभी धर्म के नाम पर तो कभी मुक्ति दिलाने का दावा करके न जाने क्या साबित करने का प्रयास करते हैं ये लोग |
मै किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहती , इसलिए वो नहीं लिखुंगी जो मैनें देखा और महसूस किया । बस सोचती ही रह गई कि क्या वास्तव में हम आधुनिक युग के सुशिक्षित लोग हैं ? जिनको कोई एक इंसान मुक्ति के नाम पर बहका कर उनकी श्रद्धा का और स्वयं उनको उपहास का पात्र बना रहा है । क्या आप बता सकते हैं कि—–
----लेकिन दुःख हो रहा है यह कहते हुए कि वो भारतीय ही हैं जो अपने ही लोगों को गुमराह कर लूट रहे हैं | दुःख होता है मुझे जब देखती हूँ कि भोले-भाले लोगों की अंधी श्रद्धा का कुछ स्वार्थी तत्व कैसे नाजायज़ फ़ायदा उठाते हैं और इसका शिकार भोले-भाले ही नहीं बल्कि पढ़े-लिखे अच्छे सुशिक्षित लोग भी होते हैं | कभी धर्म के नाम पर तो कभी मुक्ति दिलाने का दावा करके न जाने क्या साबित करने का प्रयास करते हैं ये लोग |
मै किसी की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहती , इसलिए वो नहीं लिखुंगी जो मैनें देखा और महसूस किया । बस सोचती ही रह गई कि क्या वास्तव में हम आधुनिक युग के सुशिक्षित लोग हैं ? जिनको कोई एक इंसान मुक्ति के नाम पर बहका कर उनकी श्रद्धा का और स्वयं उनको उपहास का पात्र बना रहा है । क्या आप बता सकते हैं कि—–
१. क्या वास्तव में मुक्ति नाम
का कोई जीवाणु होता है ?
२. अगर हां तो हमें मुक्ति क्यों चाहिए ?
३. क्या हम अपने अस्तित्तव से डरते हैं ?
४. क्या मुक्ति मिलेगी इसकी कोई गारण्टी है ?
५. क्या पुनर्जन्म होता है ?
६. मान लीजिए अगर मुक्ति मिल भी जाए तो हमारा अस्तित्तव क्या रह जाएगा ?
२. अगर हां तो हमें मुक्ति क्यों चाहिए ?
३. क्या हम अपने अस्तित्तव से डरते हैं ?
४. क्या मुक्ति मिलेगी इसकी कोई गारण्टी है ?
५. क्या पुनर्जन्म होता है ?
६. मान लीजिए अगर मुक्ति मिल भी जाए तो हमारा अस्तित्तव क्या रह जाएगा ?
मेरी निजी राय में तो मैं यही
कहुंगी कि शायद ऐसा अभी तक कोई सबूत नहीं है , केवल लोगों को मूर्ख बनाने के और
अपना स्वार्थ साधने के चक्कर में ऐसी बातों को गढा जाता है , हकीकत क्या है कोई नहीं जानता और अगर ऐसा होता भी है तो मैं पूरे
होशो-हवास में बेबाकी से कहती हूं कि – हे ईश्वर मुझे अगर
दोबारा जन्म मिले तो भले ही गली में भौंकने वाला कुत्ता बना देना लेकिन इस मुक्ति
से दूर ही रखना , कम से कम मेरा अपना अस्तित्तव तो होगा और
संघर्षमय जीवन जीना और जीने की चाहत का नाम ही तो जिन्दगी है – मुक्त हुए तो क्या खाक जिए ( ये मेरे अपने विचार हैं , आवश्यक नहीं कि आपकी और मेरी राय एक जैसी हो , आप भी
अपनी भावनाओं को दबा के मत रखिए जो भी कहना हो बेबाक कहिए लेकिन अपनी सोच समझ से )
जाते – जाते आप सब से मेरा विनम्र अनुरोध कि भारत भूमि को प्रदूषण मुक्त करना हमारा नैतिक धर्म है । हमें अपने धर्म का निर्वाह पूरी इमानदारी से करना चाहिए । हम जानते हैं कि हमारा छोटा सा सहयोग - केवल एक पेड लगाकर हम वातावरण में फ़ैले प्रदूषण को मिटा सकते हैं लेकिन जो प्रदूषण धर्म के ठेकेदारों नें लोगों के दिलो-दिमाग में फ़ैला रखा हैं -उसको मिटाने में भी खुले दिमाग से सहयोग देवें , तभी हम भारतियों का मस्तिष्क इन बाबाओं के फ़ैलाए प्रदूषण से से मुक्त होगा और इस चक्रव्यूह से निकल आज़ादी का जीवन जीने की कला हम सीख पाएंगे ।
धन्यवाद
सीमा सचदेव
जाते – जाते आप सब से मेरा विनम्र अनुरोध कि भारत भूमि को प्रदूषण मुक्त करना हमारा नैतिक धर्म है । हमें अपने धर्म का निर्वाह पूरी इमानदारी से करना चाहिए । हम जानते हैं कि हमारा छोटा सा सहयोग - केवल एक पेड लगाकर हम वातावरण में फ़ैले प्रदूषण को मिटा सकते हैं लेकिन जो प्रदूषण धर्म के ठेकेदारों नें लोगों के दिलो-दिमाग में फ़ैला रखा हैं -उसको मिटाने में भी खुले दिमाग से सहयोग देवें , तभी हम भारतियों का मस्तिष्क इन बाबाओं के फ़ैलाए प्रदूषण से से मुक्त होगा और इस चक्रव्यूह से निकल आज़ादी का जीवन जीने की कला हम सीख पाएंगे ।
धन्यवाद
सीमा सचदेव
1 टिप्पणी:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन महिला असामनता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
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