उस छत पर ध्वज...
आज़ादी दिवस आ रहा है ,
बाज़ार में चहुँ और 
तिरंगा लहरा रहा है।  
आज़ादी का जश्न ,
हर भारतीय प्रसन्न। 
सुना है , हर घर में ,
तिरंगा फहराया जाएगा। 
भारत माता के प्रति ,
अहसान जताया जाएगा। 
बड़े साहब का आदेश है ,
ये दिन कुछ विशेष है। 
 झंडा खरीदकर लाओ ,
अपनी छत पर फहराओ ,
देश के प्रति अपने ,
प्रेम-भाव को दर्शाओ। 
क्यों भूल जाते हैं साहब ,
जिनकी छत ही नहीं ,
वो झंडा कहाँ फहराएंगे ?
खाने के लाले पड़े हैं ,
कहाँ से खरीदकर लाएंगे ?
 तीन दिन बाद तिरंगे को ,
किस काम में लाया जाएगा ?
सोच के भी डर लगता है ,
जब अपने तिरंगे प्यारे को ,
गलियों में पाया जाएगा। 
हमें देश जान से प्यारा है,
ध्वज अपना सबसे न्यारा है। 
हर छत पर उसे लगाने से ,
क्या भूखा पेट भर जाएगा ?
भारत की पावन भूमि से ,
क्या भ्रष्टाचार मिट जाएगा ?
गर ऐसा है साहब, तो मैं 
सौ - सौ ध्वज फहराऊंगी।
अपनी नहीं , पड़ोसी की भी,
छत पर इसे लगाऊंगी।  
जब थाल बजाने बोला था ,
मैंने भी थाल बजाया था। 
जब दीप जलाने बोला था , 
मैंने भी दीप जलाया था। 
अब भी मैं ध्वज फहराऊंगी,
आज़ादी के दिवस की मैं भी ,
जी भर खुशी मनाऊंगी। 
पर चाहती हूँ ,भारत के हर घर
में झंडा खुशियां लाए। 
और वोट माँगने वाला नेता ,
झुग्गी झोंपड़ तक जाए। 
रोटी ,कपड़ा और मकान के ,
वादे पूरे कर आए। 
शिक्षा और स्वस्थ जीवन ,
उनकी झोली में भर आए। 
भीख माँगते बच्चों की ,
आँखों में सपने भर आए। 
बिन लालच , उस चौखट पर ,
नंगे पैरों चलकर जाए। 
जिस घर में खुशहाली देखे ,
ध्वज उस छत पर फहरा आए। 
जय हिन्द 
 
 


 
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