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8 अग॰ 2022

उस छत पर ध्वज...

 उस छत पर ध्वज...

आज़ादी दिवस आ रहा है , बाज़ार में चहुँ और तिरंगा लहरा रहा है। आज़ादी का जश्न , हर भारतीय प्रसन्न। सुना है , हर घर में , तिरंगा फहराया जाएगा। भारत माता के प्रति , अहसान जताया जाएगा। बड़े साहब का आदेश है , ये दिन कुछ विशेष है। झंडा खरीदकर लाओ , अपनी छत पर फहराओ , देश के प्रति अपने , प्रेम-भाव को दर्शाओ। क्यों भूल जाते हैं साहब , जिनकी छत ही नहीं , वो झंडा कहाँ फहराएंगे ? खाने के लाले पड़े हैं , कहाँ से खरीदकर लाएंगे ? तीन दिन बाद तिरंगे को , किस काम में लाया जाएगा ? सोच के भी डर लगता है , जब अपने तिरंगे प्यारे को , गलियों में पाया जाएगा। हमें देश जान से प्यारा है, ध्वज अपना सबसे न्यारा है। हर छत पर उसे लगाने से , क्या भूखा पेट भर जाएगा ? भारत की पावन भूमि से , क्या भ्रष्टाचार मिट जाएगा ? गर ऐसा है साहब, तो मैं सौ - सौ ध्वज फहराऊंगी। अपनी नहीं , पड़ोसी की भी, छत पर इसे लगाऊंगी। जब थाल बजाने बोला था , मैंने भी थाल बजाया था। जब दीप जलाने बोला था , मैंने भी दीप जलाया था। अब भी मैं ध्वज फहराऊंगी, आज़ादी के दिवस की मैं भी , जी भर खुशी मनाऊंगी। पर चाहती हूँ ,भारत के हर घर में झंडा खुशियां लाए। और वोट माँगने वाला नेता , झुग्गी झोंपड़ तक जाए। रोटी ,कपड़ा और मकान के , वादे पूरे कर आए। शिक्षा और स्वस्थ जीवन , उनकी झोली में भर आए। भीख माँगते बच्चों की , आँखों में सपने भर आए। बिन लालच , उस चौखट पर , नंगे पैरों चलकर जाए। जिस घर में खुशहाली देखे , ध्वज उस छत पर फहरा आए। जय हिन्द

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