मैं और तन्हाई - भाग १
काला अंधियारा सन्नाटा
इक आहट नें उसको काटा
न जाने कहां से आई थी
इक धुंधली सी परछाई थी
बोली मैं साथ निभाऊंगी
तुम्हें छोड कभी न जाऊंगी
मैं चिल्लाई और झल्लाई
पर ढीठ थी कितनी परछाई
मैं रोती रही वो हंसती रही
हंस-हंस कर मुझको डसती रही
छलनी कर गई मेरा सीना
दूभर कर गई मेरा जीना
नहीं पास तू मेरे रह सकती
किसी एक को मैं दूंगी मुक्ति
वो खिल-खिल हंस दी सुन के बात
सूनेपन में देती हूं साथ
तभी तो मैं पास तेरे आई
और नाम है मेरा तन्हाई
क्रमश:
मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
7 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा है. दिल का दर्द सा सामने आ जाता है. सचमुच देखा जाए तो हम सभी तनहा ही हैं. लिखती रहिये.
तभी तो मैं पास तेरे आई
और नाम है मेरा तन्हाई
BEHAD SUNDAR
BAHUT ACHA LAGA PAD KAR AAP
SHEKHAR KUMAWAT
http://kavyawani.blogspot.com/
आप ने कम शब्दो मे बहुत कुछ कह दिया
सुन्दर रचना।
आभार।
मैं रोती रही वो हंसती रही
हंस-हंस कर मुझको डसती रही
छलनी कर गई मेरा सीना
दूभर कर गई मेरा जीना
नहीं पास तू मेरे रह सकती
किसी एक को मैं दूंगी मुक्ति
वो खिल-खिल हंस दी सुन के बात
सूनेपन में देती हूं साथ
तभी तो मैं पास तेरे आई
और नाम है मेरा तन्हाई
Gazab ki panktiyan hain sabhi!
आप ने कम शब्दो मे बहुत कुछ कह दिया
bahut sundar bhaav aur badhiyaa prastuti.
Poonam
सीमा जी बहुत ही मार्मिक लेखन है आप का!
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