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5 मार्च 2009

हुआ क्या जो रात हुई

हुआ क्या जो रात हुई,
नई कौन सी बात हुई
दिन को ले गई सुख की आँधी,
दुखों की बरसात हुई
पर क्या दुख केवल दुख है,
बरसात भी तो अनुपम सुख है
बढ़ जाती है गरिमा दुख की,
जब सुख की चलती है आँधी
पर क्या बरसात के आने पर,
कहीं टिक पाती है आँधी
आँधी एक हवा का झोंका,
वर्षा निर्मल जल देती
आँधी करती मैला आँगन,
तो वर्षा पावन कर देती
आँधी करती सब उथल-पुथल,
वर्षा देती हरियाला तल
दिन है सुख तो दुख है रात,
सुख आँधी तो दुख है बरसात
दिन रात यूँ ही चलते रहते ,
थक गये हम तो कहते-कहते
पर ख़त्म नहीं ये बात हुई,
हुआ क्या जो रात हुई

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5 टिप्‍पणियां:

Mohinder56 ने कहा…

सुन्दर सकारात्मक भाव लिये कविता..बधाई

शोभा ने कहा…

बहुत अच्छी बात कही है सीमा जी। बधाई।

नीरज गोस्वामी ने कहा…

सीमा जी लाजवाब रचना है आपकी...बधाई.

नीरज

Divya Narmada ने कहा…

अच्छा प्रयास.है.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत अच्छी बात कही है सीमा जी। बधाई।