जब से कविता लिखने का मोह मन में पाला है
या कहें कि होश संभाला है
सुनती आई बडी पुरानी वाणी
एक कवि की जीवन कहानी
जहां रवि नहीं जा पाता है
वहां कवि पहुँच जाता है
बुन लेता है कल्पनाओं की चादर
चढा लेता है भावनाओं का मुल्लमा
गढ लेता है नए शब्द
हृदय के गर्भाश्य मे पाल लेता है
नन्हे शिशु की भान्ति
कोई कोमल सा भाव
सहता है जनन की पीडा और
देता है जन्म नाजुक सी कविता को
फिर छोड देता है अपनी
मासूम कविता रूपी कन्या को
बिन ब्याही माँ की भान्ति ही
दुनिया के रहमो-करम पर
कोई उसे अपनाता है
तो कोई ठुकराता है
पर कवि अपनी मस्ती मे
फिर से नया गीत गाता है
सोचा था मै भी कवि बन जाऊँगी
फिर रवि के उस पार जाऊँगी
पर जैसे ही मैने कदम बढाया
चारों ओर भूखमरी, गरीबी ,बीमारी
बेकारी---को पाया
तो स्वयं ही अपना कदम पीछे हटाया
नहीं कर सकती इन सबका तिरस्कार
नहीं ओढ सकती कल्पनाओं का मुल्लमा
नहीं पहना सकती उनको शब्दों का जामा
छोड दिया है मैने कवि बनने का विचार
नही जाना मुझे किसी रवि के पार
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मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
8 टिप्पणियां:
वाह !!! बहुत ही सरल कोमल सुन्दर भाव.....सुन्दर कविता...
जहाँ न पहुंचे रवि,वहां पहुँचता कवि....इसलिए तो कहा गया है कि समस्त विषमताओं को मर्मस्पर्शी शब्दों का जामा पहना कवि उसे अत्यंत प्रभावी ढंग से ह्रदय तक पहुंचा सकता है....
कविता कल्पना के महल बना सकती है तो आन्याय के महल को ध्वस्त भी करवा सकती है.....
बेहतरीन कविता ...भाव बहुत अच्छे थे .....अन्याय से लड़ना भी ये शब्द ही सिखाते हैं कभी कभी
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut khoob!
can you please post my poem tomorrow in the Baal udyaan saved in the draft...? kulwant
अति सुन्दर!
बहुत ही भावपूर्ण रचना.....बधाई
नहीं ओढ सकती कल्पनाओं का मुल्लमा
नहीं पहना सकती उनको शब्दों का जामा
छोड दिया है मैने कवि बनने का विचार
नही जाना मुझे किसी रवि के पार
सुन्दर कविता...
Waah....
Mat jaiye ravi ke paar...
lekin jahan se ravi ka uday hota hai uske paar jaane mein apka kya khayal hai:
प्राची के पार
Jaiyega zarror.....
वाह !! बहुत सुंदर रचना ...
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