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5 दिस॰ 2009

जमाना अब भी वही है

वर्षों से सुनते आ रहे हैं
दादा-दादी,नाना-नानी,माँ-बाप
और
अब कहते हैं
अपने बच्चों से
कि
जमाना बदल गया है
बदल गई है
वो तस्वीर,
वो सोच,
वो रहन-सहन,
वो ख़ान-पान,
वो दोस्त,
वो सभ्यता,
वो संस्कृति,
वो रीति-रिवाज़
सब कुछ.............
सब कुछ वैसा नहीँ ,
जैसा था.............
जमाना बदल गया है
लेकिन...............
लेकिन आज
रास्ते में चलते
एक गली के अंदर
सरकारी प्राइमरी स्कूल
की टूटी हुई इमारत
इमारत के बाहर
वही छोटी सी दुकान
थोड़े से बेर,
बर्फ का गोला,
थोड़ी सी टॉफियाँ
वो नंगे पाँव
अर्धनग्न बच्चे
और बच्चों का झगड़ा
चीख-चीख कर
कर गये बयान कुछ इस तरह
अरे, पीछे मुड़कर देखो
कुछ भी तो नहीँ बदला
देखो....................
वो ग़रीबी
वो बेकारी
वो दर्द
वो झगड़े
वो नफ़रत
वो लालच
वो भूख
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---------------
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सब कुछ बिल्कुल वैसा ही
और भी देखो...........
वो प्यार
वो सभ्यता
वो संस्कार
वो माहौल
वो माँ की ममता
वो बाप का स्नेह
वो रीति-रिवाज़
वो दिन-त्योहार
वो खुशी-गम
वो सुख-दुख
सब कुछ बिल्कुल वैसा ही
कुछ बदला..............?
कुछ बदला है तो तुम
केवल तुम..........
तुम्हारा रहन-सहन
तुम्हारा माहौल
तुम्हारी सोच
बस दूर हो गये हो हम सबसे
केवल तुम...............
तुम ही बढ़ गये आगे
और
नही देखा कभी
पीछे मुड़कर
केवल तुम ही छोड़ चले
वो गलियाँ
वो लोग
वो माहौल
देखने लगे आगे
और बढ़ते गये
अपनी ही धुन में
नहीँ देखा..............
नहीँ देखा कभी
कोई पीछे है तुम्हारे
और वो भी...............
उसी पथ के राही है
जहाँ से तुम गुज़रे हो कभी
और
तुम्हारे पीछे है
लंबी पंक्ति..................
जिसका कोई अंत नहीँ
देखो कभी पीछे मुड़कर
और देखो......................
नज़र की गहराई से
तो पायोगे
सब कुछ बिल्कुल वैसा ही
जैसा............
पीछे छोड़ गये हो तुम
कुछ भी नहीँ बदला
जमाना अब भी वही है

4 टिप्‍पणियां:

Arshia Ali ने कहा…

सुंदर भाव।
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अदभुत है मानव शरीर।
गोमुख नहीं रहेगा, तो गंगा कहाँ बचेगी ?

सतीश पंचम ने कहा…

hmm........nice one.

संजय भास्‍कर ने कहा…

... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।

संजय भास्‍कर ने कहा…

किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।