क्या-क्या नाच नचावे मुरली,
जहां कहीं बज जावे मुरली।
मीठी तान सुनावे मुरली,
हर मन को हर्षावे मुरली ,
जिसने भी सुनली ये तान,
नहीं रहे उसमें अभिमान।
मुरली तेरी का नाम निराला,
ये तो है अमृत का प्याला।
मुरली की धुन सुनके धेनु
दौड़ी -दौड़ी आती थी।
काम-काज सब छोड़ गोपियाँ ,
धुन में मग्न हो जाती थी।
ब्रह्मा, विष्णु और शिवा
जिस धुन के लिए तरसते थे
उस मुरली के स्वर ब्रज के
ग्वालों की खातिर बजते थे।
तान सुनी जब मीरा ने तो,
राजरानी पद छोड़ दिया ,
और रसखान ने सुन के मुरली,
जाति -बंधन तोड़ दिया।
सूरदास मुरली की धुन सुन।
बिन देखे लीला गाते।
और मुरली की धुन पर ग्वाले ,
ब्रह्म लोक तक जा आते।
उस मुरली की धुन पर ही तो
नाग नथे जाते हैं
और मुरली के बल पर ही तो ,
पर्वत उठ जाते हैं।
किसको कैसे नचा रही ,
देखो उस मुरली की लीला ,
एक बार महिमा गा दी तो ,
मजहब लगाने लगा ढीला।
बिन उसकी धुन को पहचाने ,
लगे नाचने और नचाने।
अभी तो बस महिमा गाई,
सोचो कृष्णा ने जो बजाई।
फिर कहाँ-कहाँ पर नाचोगे,
किस-किसका अंदर जाँचोगे।
जिस मन में बसे मुरलीवाला,
वो मुरली धुन का मतवाला।
जाने किस-किसको नचाता है ,
जब कृष्णा मुरली बजाता है।
2 टिप्पणियां:
वाह-वाह। बहुत सुंदर। बहुत बढिया। इस मुरली धुन मीठी भी है और सुरीली भी। सुंदर सृजन के लिए आपको बधाई।
बहुत सुंदर।
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