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26 नव॰ 2008

टीस

टीस

हृदयासागर पर
भावनाओ के चक्रवात को
चीरती निकलती है
विनाशकारी लहर
बह जाती
अनजान पथ पर
तेज नुकीली धार बन कर
मापती अनन्त गहराई
बिना किनारे और
मन्जिल के
चलती बेप्रवाह
कही भी तो
नही मिलती थाह
या फिर
चीरती है
काँटे की भान्ति
मन-मत्सय के सीने को
निकलती है बस
आह भरी चीस
भर जाती हृदय मे टीस
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1 टिप्पणी:

daanish ने कहा…

mun ki vyathaa par
shabdoN ka libaas...
achhi prastuti hai....
---MUFLIS---