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19 नव॰ 2008

जिन्दगी है तो जियो

जिन्दगी है तो जियो

थक गई हूँ सुनते-सुनते
मुक्ति की परिभाषा
मुक्ति दुखोँ से ,सँसार से
जिम्मेदारियोँ से , घर-बार से
परन्तु
नही चाहिए मुझे मुक्ति
नही चाहत है मुझे
मिलने की
किसी अज्ञात से
नही चाहत है मुझे
बूँद की भान्ति
सागर मे समा जाने की
चाहत है मुझे
अपने अस्तित्व की
नए रूप धारने की
सब कुछ जानने की
भले ही बनूँ मरणोपरान्त्
गली का कुत्ता
भले ही भौन्कु
राहगीरो पर
परन्तु होगा मेरा अपना अस्तित्व
होगी अपनी सोच
जिन्दगी है तो जियो
अपने लिए
अपनो के लिए

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2 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अपने मनोभावो को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है।

डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह ने कहा…

darss to speak the reality regarding philosphy .good attempt. keep it up
dr.bhoopendra