जिन्दगी है तो जियो
थक गई हूँ सुनते-सुनते
मुक्ति की परिभाषा
मुक्ति दुखोँ से ,सँसार से
जिम्मेदारियोँ से , घर-बार से
परन्तु
नही चाहिए मुझे मुक्ति
नही चाहत है मुझे
मिलने की
किसी अज्ञात से
नही चाहत है मुझे
बूँद की भान्ति
सागर मे समा जाने की
चाहत है मुझे
अपने अस्तित्व की
नए रूप धारने की
सब कुछ जानने की
भले ही बनूँ मरणोपरान्त्
गली का कुत्ता
भले ही भौन्कु
राहगीरो पर
परन्तु होगा मेरा अपना अस्तित्व
होगी अपनी सोच
जिन्दगी है तो जियो
अपने लिए
अपनो के लिए
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मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
अपने मनोभावो को बहुत सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया है।
darss to speak the reality regarding philosphy .good attempt. keep it up
dr.bhoopendra
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