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30 नव॰ 2008

न जाने क्यों......?

न जाने क्यों......?


मन आहत है
आँखे नम
कितना पिया जाए गम
नहीं देखा जाता
बिछी हुईं लाशों का ढेर
नहीं सहन होती माँ की चीख
नहीं देखी जाता
छन-छनाती चूडियों का टूटना
नहीं देखा जाता
बच्चों के सर से उठता
माँ-बाप का साया
नहीं देखी जाती
माँ की सूनी गोद
नहीं देखी जाती
किसी बहन की कुरलाहट
न जाने कब थमेगा
यह मृत्यु का नर्तन
यह भयंकर विनाशकारी ताण्डव
न जाने कितनी
मासूम जाने लील लेगा
और भर जाएगा
पीछे वालों की जिन्दगी में अन्धेरा
मजबूर कर देगा जिन्दा लाश बनकर
साँस लेने को
न जाने क्यों......

4 टिप्‍पणियां:

हिन्दीवाणी ने कहा…

कितना पिया जाए गम
नहीं देखा जाता
बिछी हुईं लाशों का ढेर
सीमा, बहुत संवेदना है तुम्हारे शब्दों में। दिल को लग गई यह कविता।

अनुराग ने कहा…

बहुत मार्मिक रचना है. आज सबों की आँखें नम है. बधाई नही देना चाहता इस सुंदर रचना के लिए. क्योकि बधाई शब्द तो खुशी में इस्तेमाल करते है. आज तो पूरा देश गमगीन है और प्रभु से प्रार्थना करता है की फ़िर ये दिन हमें न देखना पड़े. आपकी भावनाएं कविता के माध्यम से फूट पड़ी है .....

हिन्दीवाणी ने कहा…

इसी विषय पर मैंने अपने नवीनतम लेख के अंत में आपकी इस कविता का लिंक दिया है, जिससे अन्य पाठक भी आपकी इस कविता तक पहुंचे और महसूस करें।

सीमा सचदेव ने कहा…

युसूफ जी कविता पढ़ने और टिप्पणी के लिए धन्यवाद | अनुराग जी सच्च कहा आपने इस काबिल तो हम रहे ही nahee ki ek doosare ko badhaaii de sake | shaayad hamaaree praarthanaayen bhi kuch asar nahi dikhaati ,dekha na aaj fir dhamaaka hua asaam me