मैं पहचान हूँ,
पहचान
हूँ तुम्हारी,
तुम्हारे
संस्कारों की,
तुम्हारी
सभ्यता की |
तुम्हारे
पहनावे की,
तुम्हारी
भाषा की |
तुम्हारे
विश्वास की,
तुम्हारी
आस्था की |
तुम्हारे
घर की,
तुम्हारी
बाहर की |
तुम्हारे
आराध्य की,
तुम्हारी
आराधना की |
तुम्हारे
अस्तित्त्व की,
तुम्हारी
कल्पना की |
तुम्हारे
विचार की,
तुम्हारी
भावना की |
तुम्हारे
सृजन की,
तुम्हारी
वाणी की |
तुम्हारे
भविष्य की,
तुम्हारी
आज की |
तुम्हारे
समाज की |
तुम्हारा
बीता हुआ कल भी
हूँ मैं,
और आने वाला पल
भी हूँ मैं |
मैं
ही तुम्हारा अस्तित्त्व हूँ ,
और मैं ही व्यक्तित्त्व
भी हूँ |
मैं
तुम्हारा व्यवहार भी हूँ,
और तुममे समाया सभ्याचार भी हूँ |
तुम्हारा
वजूद भी मैं,
और तिरस्कार भी मैं|
मैं
तुम्हारे आत्म-विश्वास में,
मृगतृष्णा
की प्यास में |
मैं
तुम्हारे भीतर के प्रकाश
में भी,
और ज़िंदा ही बन चुकी
लाश में भी |
तुम्हारे
भीतर कीअसीम गहराई हूँ मैं,
रोम-रोम मे समाई
हूँ मैं |
मैं
राम हूँ और
रावण
भी मैं ही हूँ
|
तपती
दोपहरी हूँ और
सावन
भी मैं ही हूँ
|
मैं
कृष्ण की बाँसुरी हूँ,
राम
का धनुष-बाण हूँ
|
मैं
गृहस्थी हूँ और ,
मैं
ही निर्वाण हूँ |
मैं
कोमल सा भाव हूँ
,
कटु
वचनों का प्रहार भी
हूँ |
मैं
मन की शक्ति हूँ,
तो तुम्हारी भक्ति भी हूँ|
मैं
सीता की सहनशीलता हूँ,
सूर्पणखा
की मलिनता भी हूँ |
मैं
यशोदा का दुलार हूँ,
तो कैकेयी का संस्कार भी
हूँ |
मैं
भरत सा भाई हूँ,
महाभारत
की लड़ाई भी हूँ |
मैं
न केवल कन्स हूँ
,
मनु
का वंश भी हूँ
|
मैं
मीरा की वाणी हूँ
,
मैं
झाँसी की रानी भी
हूँ |
मैं
आशा की किरण हूँ
|
तो सोने का हिरण
भी हूँ|
मैं
सुनहरी प्रभात हूँ,
तो किसी का आघात
भी हूँ |
मैं
ज़िंदा हूँ ,तो पूराआसमान
हूँ |
नहीं
तो बस एक निशान हूँ|
मैं
कुदरत का दिया वरदान
हूँ |
मुझे
पहचानो,
मैं,
तुम्हारी ही पहचान हूँ |
अनुभव
मैं
तुम्हें अनुभव से मिलवाऊंगी ,
अभ्यास
से परिचय करवाऊंगी |
तुम्हें
भट्ठी में तपाऊँगी और
निखारकर
खरा सोना बनाऊंगी |
तुम्हें
मुश्किलें भी दूँगी और
रास्ता
भी बताऊँगी |
तुम्हें
निराशा भी होगी, पर
पर जीवन पाठ भी
पढ़ाऊंगी |
अनुभव
तुम्हें डगमगाने नहीं देगा |
तुम्हारी
ताक़त बन जाएगा |
अनजाने
मे ही सही पर,
सीख
दे जाएगा |
अनुभव
तुम्हें हर मोड़ पर,
सही
पथ दिखाएगा |
तुम्हारी
पहचान को ,
भीतर
से बाहर लाएगा |
अनुभव
वह रहस्य जो
साया
बन सदा साथ निभाएगा
और अंधकार मे,
प्रकाश
बन जाएगा |
अनुभव
जब रोशनी बन,
अंतर्मन
में बस जाता है
|
तो भीतर किसी कोने
में,
ज्ञान
का दीप जलाता है
|
वो ज्ञान जो जीवन का
सार है |
वो ज्ञान जो अपरंपार है
|
वो ज्ञान जो, ब्रह्मांड मे
समाया है,
अनुभव
उसी का साया है
|
अनुभव
अदृश्य शक्ति है |
अनुभव अज्ञानता से विरक्ति है |
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-06-2022) को चर्चा मंच "जीवन जीने की कला" (चर्चा अंक-4448) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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बेहतरीन प्रस्तुति।
विचारणीय प्रस्तुति
बहुत शानदार प्रस्तुति।
सभी रचनाएं पठनीय सुंदर।
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