कोरोना सच में है वायरस
या ये कोई घोटाला है |
कि मुँह खोले खड़े विध्वंस
के मुँह का निवाला है |
कि लगती चाल है कोई ,
कहीं पे कुछ तो काला है |
कि दुनिया बँध के रह जाए,
कहीं तो इसका ताला है |
कि दुनिया चाँद पे पहुँची ,
न क्यों वायरस संभाला है ?
कि मन में ये बैठा के डर ,
कि अब तू मरने वाला है ,
कि नींदें रात की छीनी ,
औ छीना दिन उजाला है |
कि भय ऐसा बैठाया है ,
कि ज़िंदा मार डाला है |
अरे फट जाएगी इक दिन ,
जो मुख में भरी ज्वाला है |
चिंगारी एक चमकी है तो ,
लपटें भी जलाएगी |
की अंतर्मन की गर्मी से ,
कोरोना को रुलाएगी |
सीमा सचदेव
या ये कोई घोटाला है |
कि मुँह खोले खड़े विध्वंस
के मुँह का निवाला है |
कि लगती चाल है कोई ,
कहीं पे कुछ तो काला है |
कि दुनिया बँध के रह जाए,
कहीं तो इसका ताला है |
कि दुनिया चाँद पे पहुँची ,
न क्यों वायरस संभाला है ?
कि मन में ये बैठा के डर ,
कि अब तू मरने वाला है ,
कि नींदें रात की छीनी ,
औ छीना दिन उजाला है |
कि भय ऐसा बैठाया है ,
कि ज़िंदा मार डाला है |
अरे फट जाएगी इक दिन ,
जो मुख में भरी ज्वाला है |
चिंगारी एक चमकी है तो ,
लपटें भी जलाएगी |
की अंतर्मन की गर्मी से ,
कोरोना को रुलाएगी |
सीमा सचदेव
4 टिप्पणियां:
सुन्दर और सामयिक रचना।
Bahut - Bahut aabhaar Dr Roopchandar Shastri ji . Bahut varshon baad aapki pratikriyaa dekhakar atyant harsh huaa . Asha hai aap sparivaar svasth aur surkshit hain . Warm Regards...Seema
AadharSeloan aapki pratikriyaa ke lie hardik dhanyavaad . Regards... Seema
कोरोना सच में है वायरस
या ये कोई घोटाला है |
कि मुँह खोले खड़े विध्वंस
के मुँह का निवाला है |
कि लगती चाल है कोई ,
कहीं पे कुछ तो काला है |
बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने ! इसके लिए आपका दिल से धन्यवाद। Visit Our Blog
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