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2 जन॰ 2009

माँ

माँ





नि:शब्द है

वो सुकून
जो मिलता है
माँ की गोदि मे
सर रख कर सोने मे

वो अश्रु
जो बहते है
माँ के सीने से
चिपक कर रोने मे

वो भाव
जो बह जाते है अपने ही आप

वो शान्ति
जब होता है ममता से मिलाप

वो सुख
जो हर लेता है
सारी पीडा और उलझन

वो आनन्द
जिसमे स्वच्छ
हो जाता है मन


.......................................................
.......................................................


माँ

रास्तो की दूरियाँ
फिर भी तुम हरदम पास

जब भी
मै कभी हुई उदास

न जाने कैसे?
समझे तुमने मेरे जजबात

करवाया
हर पल अपना अहसास

और
याद हर वो बात दिलाई

जब
मुझे दी थी घर से विदाई

तेरा
हर शब्द गूँजता है
कानो मे सन्गीत बनकर

जब हुई
जरा सी भी दुविधा
दिया साथ तुमने मीत बनकर

दुनिया
तो बहुत देखी
पर तुम जैसा कोई न देखा

तुम
माँ हो मेरी
कितनी अच्छी मेरी भाग्य-रेखा

पर
तरस गई हूँ


तेरी
उँगलिओ के स्पर्श को
जो चलती थी मेरे बालो मे

तेरा
वो चुम्बन
जो अकसर करती थी
तुम मेरे गालो पे

वो
स्वादिष्ट पकवान
जिसका स्वाद
नही पहचाना मैने इतने सालो मे

वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास

मैने पिया कभी आँखे बन्द कर
कभी गिराया तेरी आँखे चुराकर

आज कोई नही पूछता ऐसे
???????????????????
तुम मुझे कभी प्यार से
कभी डाँट कर खिलाती थी जैसे


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3 टिप्‍पणियां:

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

सीमा जी
नमस्कार

माँ की बात आने पर दुनिया का सब कुछ बौना पड़ जाता है
मैं माँ के बारे कुच्छ कहने में असमर्थ हूँ
मुझे यहाँ पर अपनी कविता नहीं लिखना chahiye
, जानता हूँ लेकिन समान विषय होने के नाते , याचना सहित मैं अपनी कविता पोस्ट कर रहा हूँ ;


MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

BACHPAN KI PYARI SMRITIYAN, AANKHEN NAM KAR JATI HAIN
GALTI KAR PAHLOO MEN TERE, CHHIPNA YAAD DILATI HAIN
IN KHATTI-MEETHI YADON KI, KaTHA SUNANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

TAN SE DOOR BHALE HOON LEKIN, MAN SE KABHI RaHA NA DOOR
MUJHE KHABAR HAI TANIK KASHT BHI, TUMKO RAH NAHI MANJOOR
AB TAK BADHE FAsLON KA TUM, ANT KaRANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

GHAR SE DOOR BaSA HOON TAB SE, SOCH TUMHARI BADAL GAI
YAHAN HAMARI MAZBOORI NE, RACH DI DUNIYA EK NAI
LEKIN SULAH WAQT SE KAR AB,NEH JaTANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

MAA TUMSE DOORI KO LEKAR, BAAT HAMESHA CHaLTI HAI
GAON MEN RAHNE KI ZID BHI, AKSAR MAN KO KHaLTI HAI
MERE JEEWAN MEN KHUSHIYON KE, DEEP JaLANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

MANA TERI UMEEDON PAR, KHaRA NAHIN MAI UtRA HOON
LEKIN TUMKO KaHAN PaTA MAIN, KIS PEEDA SE GUzRA HOON
HATHON KA SPARSHI MArHAM, MUJHE LaGANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO

MUJHKO JEEWAN DE KAR TUMNE, APNA FARZ NIBHAYA HAI
TEREE SEWA NA KAR AB TAK, KUHD PAR KARZ BADHAYA HAI
KAISE BANOON KRITAGYA TUMHARA, RAH BATANE AA JAAO
MAMTA KE AANCHAL MEN PHIR SE, MUJHE SULAANE AA JAAO
-----0#0----
Dr. Vijay Tiwari “kislay”
JABALPUR, Madhya Pradesh,
INDIA. pin: 482002
आपका
- विजय

roushan ने कहा…

बहुत अच्छी कवितायें

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

वो मीठी सी झिडकी
वो प्यारी सी लोरी
वो रूठना - मनाना
और कभी - कभी
तेरा सजा सुनाना
वो चेहरे पे झूठा गुस्सा
वो दूध का गिलास
जो लेकर आती तुम मेरे पास

सीमा जी,
आपने बड़ी ही खूबसूरती से माँ के प्यार को दर्शाया है ,एक बहुत सुंदर रचना के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएँ