परछाई
घूरती हुई क्रूर निगाहे
झपट लेने को लालायित
पसरा केवल स्वार्थ
दुर्विचार,आडम्बर
नही बचा इससे कोई घर
बोई थी प्यार की फसल
मिला नफरत का फल
सच्चाई की जमीन को
रौन्दता झूट का हल
मिठास मे छिपा
जानलेवा जहर
भूखी निगाहो मे लालच का कहर
रह गया केवल अकेलापन
कही भी तो नही अपनापन
यह लम्बा सफर काटना अकेले
तन्ग डगर टेढे-मेढे रास्ते
न जाने चलना है
इनपर किनके वास्ते
इधर-उधर आजु-बाजु
कोई भी तो नही साथ
तन्हाई, सन्नाटा सूनापन
दिन भी लगे काली रात
छाया मन मस्तिष्क पर
घोर अँधकार
मिट चुके सारे विचार
पर अचानक
सन्नाटे को चीरती एक ध्वनि
जैसे बोल उठी हो अवनि
कहाँ हो अकेले.......?
यहाँ तो हर कदम पर मेले
देखो मेरी गोदि मे
और देखो मेरे प्रियतम की छाया
जो बनी रहती है सब पर
नही तो देखो अपना ही साया
जो सुख की शीतलता मे भले ही
नज़र न आए
पर गम की तीखी धूप मे
कभी आगे तो कभी पीछे
हर पल साथ निभाए
नही है केवल तन्हाई
तुम्हारे पास है
तुम्हारी अपनी परछाई
मुहावरे ढूँढो :
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मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
2 वर्ष पहले
2 टिप्पणियां:
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