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24 जन॰ 2009

अज्ञात कन्या का मर्म

अज्ञात कन्या का मर्म (राष्ट्रीय कन्या दिवस विशेष)
अज्ञात कन्या का मर्म

भिनभिनाती मखियाँ
कुलबुलाते कीडे
सूँघते कुत्ते
कचरादान के गर्भ मे
कीचड़ से लथपथ
फिर से पनपी
एक नासमझ जिन्दा लाश
छोटे-छोटे हाथों से
मृत्यु देवी को धकेलती
न जाने कहाँ से आया
दुबले-पतले हाथों में इतना बल
कि हो गए इतने सबल
जो रखते है साहस
मौत से भी जूझने का
शायद यह बल
वह अहसास है
माँ के पहले स्पर्श का
वह अहसास है
माँ की उस धड़कन का
जो कोख मे सुनी थी
चीख-चीख कर कहती है
नन्ही सी कोमल काया....
मैं जानती हूँ माँ
मैं पहचानती हूँ
तुम्हारी ममता की गहराई को
तुम्हारे स्नेह को
तुम्हारे उस अनकहे प्यार को
महसूस कर सकती हूँ मैं
भले यह दुनिया कुछ भी कहे
मैं इस काबिल नहीं कि
सब को समझा सकूँ
तुम्हारी वो दर्द भरी आह बता सकूँ
जो निकली थी तेरे सीने की
अपार गहराई से
मुझे कूडादान में सबसे छुप-छुपा कर
अर्पण करते समय
यह तो सदियों से चलता आ रहा सिलसिला है
कभी कुन्ती भी रोई थी
बिल्कुल तुम्हारे ही तरह
मैं जानती हूँ माँ
तुम भी ममतामयी माँ हो
न होती
तो कैसे मिलता मुझे तुम्हारा स्पर्श
तुम तो मुझे कोख मे ही मार देती
नहीं माँ ! तुम मुझे मार न सकी
और आभारी हूँ माँ
जो एक बार तो
नसीब हुआ मुझे तुम्हारा स्पर्श
उसी स्पर्श को ढाल बना कर
मैं जी लूँगी
माथे पर लगे लाँछन का
जहर भी पी लूँगी
तुम्हारे आँचल की
शीतल छाया न सही
तुम्हारे सीने से निकली
ठण्डी आह का तो अहसास है मुझे
धन्य हूँ मै माँ
जो तुमने मुझे इतना सबल बना दिया
आँख खुलने से पहले
दुनियादारी सिखा दिया
इतना क्या कम है माँ
कि तूने मुझे जन्मा
हे जननी!
अवश्य ही तुम्हारी लाचारी रही होगी
नहीं तो कौन चाहेगी
अपनी कोख में नौ माह तक पालना
कुत्तो के लिए भोजन
इसीलिए तो दर्द नहीं सहा तुमने
कि दानवीर बन कर
कुलबुलाते कीड़ों के भोजन का
प्रबन्ध कर सको
नहीं! माँ ऐसी नहीं होती
मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं
मैं ही अभागी
तुम्हारी कोख में न आती
आई थी तो
तुम्हें देखने की चाहत न करती
बस इसी स्वार्थ से
कि माँ का स्नेह मिलेगा
जीती रही, आँसू पीती रही
एक आस लिए मन में...
स्वार्थ न होता
तो गर्भ में ही मर जाती
तुम्हें लाँछन मुक्त कर जाती
किसी का भोजन भी बन जाती
पर यह तो मेरे ही स्वार्थ का परिणाम है
कि बोझ बन गई मैं दुनिया पर
कलंक बन गई तेरे माथे पर
कुत्तों, कीड़ों या चीलों का
भोजन न बन सकी
और बन गई एक अज्ञात कन्या
अज्ञात कन्या
*****************************
कार्टून बनाया- मनु बेतखल्लुस



19 टिप्पणी:
संगीता पुरी said...
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर बहुत अच्‍छी कतवता प्रस्‍तुत की है आपने....;आभार....सभी कन्‍याओं को उनके बेहतर भविष्‍य के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं।

January 24, 2009 12:49 PM
Divya Prakash said...
कार्टून बहुत अच्छा लगा मुझे और कविता की ही तेरह बहुत मार्मिक है.....
वास्तव में अभी भी बहुत लोगो की मानसिकता लड़कियों को लेकर,दकियानूसी ही है ..
एक फिल्म आई थी "मात्रभूमि - A Nation without women "
मैं सभी को कहूँगा की एक बार ये फिल्म भी जरुर देखें ....बहुत दिनों तक ये फिल्म आपको परेशान करती रहेगी ...

January 24, 2009 1:17 PM
anuradha srivastav said...
बेहद मार्मिक व संवेदित करती कविता। चित्र भी कविता की तरह ही प्रभावी है।

January 24, 2009 1:28 PM
रजनीश के झा (Rajneesh K Jha) said...
कविता और कार्टून के सहारे भ्रूण ह्त्या और कन्या पर मार्मिक प्रस्तुतिकरण, लेखिका और चित्रकार दोनों को बधाई, और सिर्फ़ शब्द नही जरुरत एक दृढनिश्चय की और उस पर अमल की. आगे हमें ही तो आना है.
धन्यवाद

January 24, 2009 1:35 PM
चारु said...
आँखों में आँसू ला दिया आपकी कविता ने....
और मनु जी आपके कार्टून ने तो दिल दहला दिया।

January 24, 2009 2:48 PM
manu said...
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कविता वाकई हौलनाक है...रोंगटे खड़े कर देने वाली.....
एक अपील नियंत्रक जी से...की इस तरह के काम के लिए कुछ समय अधिक दिया करें ...क्यूंकि समय की कमी...बिजली की किल्लत के कारण रात रात जागना पड़ता है...और अगर इस काम को किसी वजह से नहीं कर paataa to khud se bahut sharmindaa hotaa.... maaf kijiye translation me dikkat hai

January 24, 2009 3:10 PM
Dilsher Khan said...
बेहतरीन , वाकई, लाजवाब, कमाल कर दिया आपने... बेहद मार्मिक...!
दिलशेर "दिल"

January 24, 2009 5:16 PM
सीमा सचदेव said...
मनु जी आपका चित्र तो किसी की भी आँखों में आंसू ला दे
मुझे नही मालूम था कि मेरी कविता पर आपको चित्र
बनाने का कार्य सौंपा जाएगा वरना मै कविता कुछ दिन पहले ही
भेज देती मैंने कल ही यह कविता भेजी थी और मै समझ
सकती हूँ कि आपके लिए कितना मुश्किल रहा होगा यह
कार्य उस पर भी जो मार्मिक चित्र आपने बनाया उसके लिए
आप काबिले तारीफ़ है आपका बहुत बहुत धन्यवाद .....सीमा सचदेव

January 24, 2009 5:25 PM
आलोक सिंह "साहिल" said...
गजब का मर्म छुपा है,सीमा जी....
बेहतरीन कविता...
मनु भाई हमेशा की ही तरह इसबार भी बेतखल्लुस..
आलोक सिंह "साहिल"

January 24, 2009 6:11 PM
अवनीश एस तिवारी said...
अफ़सोस की बात तो है लेकिन कोशिश से बदल जायेगा
रचना के लिए बधाई

अवनीश

January 24, 2009 6:39 PM
Harkirat Haqeer said...
सीमा जी और मनु जी आपको ढेरों आशीष इतनी सुन्‍दर प्रस्‍तुती के लिए...

January 24, 2009 6:42 PM
सुशील कुमार said...
सीमा सचदेव की कविता“अज्ञात कन्या..” हृ-तंत्र को झंकृत करती हुई संवेदना की गहराई में धँसकर मानव के उस घिनौने कर्म को कायल करती है जहाँ स्त्री-जाति के प्रति घृणा और उपेक्षा का निमर्म भाव वर्तमान हो।कविता में लय और संगति पूर्णत: ‘इनटैक्ट’ है जो कविता को समकालीन कविता का दर्जा देती है।इस कविता की बड़ी विशेषता यह है कि इसकी भाषा की सरलता,भाव की संश्लिष्टता और भावपराणयता कविता को पठनीय बनाती है जो कविता-पाठ के क्रम में पाठक को कविता के अंत तक बाँधे रखती है।

January 25, 2009 5:24 PM
सुशील कुमार छौक्कर said...
बालिका दिवस पर एक अच्छी रचना की प्रस्तुति।

January 25, 2009 6:32 PM
vinay k joshi said...
सीमा जी
मन की गहराई से लिखी गई कविता जो किसी भी संवेदनशील को झकझोरने का माद्दा रखती है ---बधाई
मनुजी
एक चित्र किसी कहानी से अधिक वजन रख सकता है, आपने दर्शाया है --- बधाई
सादर,
विनय के जोशी

January 25, 2009 8:54 PM
rachana said...
सीमा जी
इस कविता का एक एक शब्द बहुत दिनों तक दिल पर दस्तक देता रहेगा .कई बार आप की कविता सोच आंख नम करता रहेगा
उफ़ ये शब्द ये भाव मर्म की सीमा है
सीमा जी बहुत सुंदर लिखा है आप ने
मनु जी आप का चित्र इतना कुछ कहता है की उस पर किताब लिखी जा सकती है .जो जितना चाहे पढ़ ले एसा है
सादर
रचना

January 26, 2009 3:15 AM
Vivek Gupta said...
बेहतरीन

January 26, 2009 6:03 AM
प्रकाश बादल said...
वाह वाह मनु भाई का कार्टून तो अपने आप में एक सटीक और ज़बर्दस्त कविता कह रहा है। भाई मनु! कहाँ से ऐसे ख्याल आजाते हैँ वाह वाह क्या ज़बर्दस्त है। आप एक दिन चमकेंगे। और सब आपकी चमक के आगे फीके होंगे।


कविता भी बहुत अच्छी और सटीक है। कवियत्रि को भी मेरी बधाई।

एक शेर मैं भी बेटियों के कातिलोँ पर ठोंक ही देता हूँ मुझे उम्मीद है कि ये मेरी बददुआ उन सब को लगेगी जिनको मैं चाहता हूँ।


" कोख़ को जो, 'बेटियोँ की कब्र' बना देते हैं।

उन सभी लोगों को हम बददुआ देते हैं।
"

January 26, 2009 11:52 AM
आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' said...
माम्र्स्पर्शी रचना,
सटीक प्रभावी चित्र.
कवयित्री और चित्रकार दोनों को साधुवाद.
कविता में शब्दचित्र.
रेखाचित्र में कविता.

January 27, 2009 7:02 PM
dschauhan said...
उनके प्रति अपना भी कुछ फर्ज़ है!
हम पर भी तो उनका भारी कर्ज़ है!!
इसमे फ़र्ज के कर्ज में भी अपनी ही गर्ज है!
आओ मुमकिन कर लें यह भी कोई मर्ज है!!

January 27, 2009 9:15 PM

3 टिप्‍पणियां:

daanish ने कहा…

zindgi ki aisi talkh sachchaaee ko itne qreeb se aur aisi bebaaqi se prastut kiya aapne......
maiN bilkul belafz hooN...
kya tippni dooN...aapki rachna kisi bhi barhi se barhi tippni se bhi barh kar hai.....
aapko naman karta hooN...
aur Manuji ko bhi abhinandan...
---MUFLIS---

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

agyat kanya ka marm.......
...kya badhiya se shabdo me us marm ko utara he jise ab hame apne dil me utarna he..
kanya...ye shabd hi mujhe andar tk jhnkrat kar dete he..aapki pankitio ko mene apni dairy me utara he.

PRINCIPAL HPS SR SEC SCHOOL ने कहा…

KANYA PAR RACHNA DIL KO CHHU GAYI.
PANCHTANTRA PAR SHAYAD AAPNE KUCHH KAVITAYE LIKHI H.
BHEJNE KI KIRPA KARE.