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9 जन॰ 2009

कसम से .....वो दर्द हम....

कसम से .....वो दर्द हम....

दर्द मे पनपते है गीत ऐसा ही कुछ लोग कहते है
सीने मे कुछ दर्द कसम से जिन्दा दफन रहते है


छोटे से तयखाने मे उमडते है विशाल सागर
कातिल लहरो मे कसम से उसकी कफन बहते है


कहाँ मिलता है ऐसी पीडा को शब्दो का सम्बल
हर पल जिसके कसम से किले बनते औ ढहते है



ना वक़्त ना हालात लगा सकते है उस पर मरहम
वो दिल सीने मे कसम से कितना दर्द सहते है


सच्च कहते है दर्द की कोई सीमा नही होती
वो दर्द हम कसम से सीने मे समेटे रहते है



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5 टिप्‍पणियां:

makrand ने कहा…

छोटे से तयखाने मे उमडते है विशाल सागर
कातिल लहरो मे कसम से उसकी कफन बहते है

bahut umda

daanish ने कहा…

"sach kehte haiN dard ki koi seema nahi hoti..."
kis saad`gi se ek talkh haqiqat ko byaan kiya gya hai...
bahot hi achhi aur prabhaavshali rachna...
badhaaee.......!!
---MUFLIS---

Harshvardhan ने कहा…

bemisaa , achcha chitran kiya hai

Poonam Agrawal ने कहा…

Sach kehte hai dard ki koi seema nahi hotee
vo dard ham kasam se seene mein samete rehte hai....
bahut jaandaar baat itni aasaani se keh dee aapne
BADHAI....

Rakesh Pandey ने कहा…

bahut sundar

vaise mai aapako aapakee saamayik viShayvastu par teekhee tippaNee ke liye jaanataa huu par vo dekhane ko nahee mil rahee.

rakesh