जब चेहरे से नकाब हटाया मैने
कहते हैं चेहरा दिल की जुबान होता है
दिख जाता है चेहरे पर
जो दिल मे तूफान होता है
एक तूफान के बवंडर को छुपा लिया मैने
अपने चेहरे पे एक नया चेहरा लगा लिया मैने
फिर तूफान पे तूफान आए
मैने भी चेहरे पे चेहरे लगाए
दिखने मे खूबसूरत थे
किसी की खातिर मेरी जरूरत थे
बाहरी खूबसूरती के सम्मुख
असली खूबसूरती बेमानी थी
किसी ने भी वो खूबसूरती
नही पहचानी थी
मै घिरती गई
चेहरों के चक्रवात मे
जो दिखाए थे मैने
किसी को सौगात मे
पर भूला नहीं मुझे
अपना असली रूप
जो सबके लिए खूबसूरत थे
वही चेहरे मुझे लगते थे कुरूप
पर क्या करती मजबूरी थी
चेहरे पे मुस्कान जो जरूरी थी
जिनको हालात की खातिर ओढा था मैने
जिनके कारण वास्तविक्ता को छोडा था मैने
जिनको मैने अपनी शक्ति बनाया था
अपनो की मुस्कान हेतु जिनको अपनाया था
वही चेहरे बन बैठे मेरी कमजोरी
और दिखाने लगे सीना जोरी
हर पल मेरे सम्मुख आते
बात-बात पर
मेरी मजबूरी का अहसास कराते
रह जाती मै आंसू पीकर
क्या करना इन चेहरों संग जीकर
डरती थी , चेहरे हटाऊंगी
तो किसी अपने को ही रुलाऊंगी
अपनों की नम आँखें
नहीं देख पाऊंगी
पर आज सहनशीलता छूट गई
चेहरों की दीवार से
एक ईंट टूट गई
हृदय मे एक झरोखा बन आया
मैने एक नकाब हटाया
जो पर्दे मे कैद थीं
वो आँखें खोल दी
मानस पटल पर दबी हुई
कुछ बातें बोल दीं
थोडा ही सही
पर अजीब सा सुकून पाया मैने
जब एक चेहरे से नकाब हटाया मैने
मुहावरे ढूँढो :
-
मुहावरे ढूँढो :
चेहरे की हवाइयाँ उड़ गईं, देख लिया जब शेर ,
भीगी बिल्ली बना बहादुर , भागा लाई न देर |
पास हुआ तो फूला नहीं , समाया पप्पू राम |
घर बसाकर समझ ...
4 वर्ष पहले
5 टिप्पणियां:
Sima ji aapki kavita kafi achhi lagi mujhe. sath hi sath lagaya gaya chitra bhi kafi sundar hai.
बहुत सुन्दर और गहरे भाव..प्रवाह भी उम्दा है. नियमित लिखें-शुभकामनाऐं.
bahot achhi kavita hai...
shabd poore manobhaav ko samjha paane mei sakhsham bn parhe haiN.
badhaaee svikaareiN.
देहरादून से छपने वाली पत्रिका "सरस्वती-सुमन" का ग़ज़ल विशेषांक आया है .
आपकी पारखी नजरों से गुज़र जाए तो उसके वक़ार में इज़ाफा हो..
पता है : डॉ आनंद सुमन सिंह, मुख्या सम्पादक ,
सरस्वती सुमन , १-छिबर मार्ग , आर्य नगर , देहरादून .
फ़ोन : ०९४१२० ०९००० .
चेहरों की दीवार से
एक ईंट टूट गई
हृदय मे एक झरोखा बन आया
मैने एक नकाब हटाया
जो पर्दे मे कैद थीं
वो आँखें खोल दी
मानस पटल पर दबी हुई
कुछ बातें बोल दीं
थोडा ही सही
पर अजीब सा सुकून पाया मैने
जब एक चेहरे से नकाब हटाया मैने
वैसे पूरी रचना भावपूर्ण है लेकिन ये पंक्तियाँ कुछ ज्यादा ही गहराई लिए हुए हैं ....
बहुत बहुत बहुत ही अच्छा लिखा है...
मार्मिक रचना....
अक्षय-मन
एक सुन्दर कविता जो यथार्थ का सजीव चित्रण है.
बधाई.
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